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Tuesday, September 4, 2018

राजस्थान के प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल में काम आयेंगे आविष्कार, डब्ल्युआईएसएच और बीआईआरएसी ने मिलाया हाथ

WISH and BIRAC team up to provide last mile Primary Healthcare Innovations in Rajasthan

जयपुर। विश (डब्ल्युआईएसएच) दो ऐसे नए आविष्कार लॉन्च कर रही है, जिससे न सिर्फ बीमारियों की जांच जल्द, बेहद कम समय और खर्च में प्रभावी तरीके से होगी बल्कि प्राथमिक स्तर पर ही सम्स्याओं की पहचान कर उनका शुरुआत में ही इलाज करना आसान बनाएगी, जिससे इलाज पर लोगों का खर्च कम होगा। पोर्टेबल होने की वजह से ये डिवाइस दूर-दराज के लोगों तक जांच के बेहतरीन समाधान उपलब्ध कराएगी।
 इन डिवाइस का इस्तेमाल प्रशिक्षित स्टाफ अथवा डॉक्टर करेंगे और आगे के इलाज के लिए मरीज  विश (डब्ल्युआईएसएच) द्वारा बनाए रेफरल सिस्टम का इस्तेमाल कर सकता है। इन डिवाइस के जरिए हम नवजात बच्चों में बढ रही श्रवण सम्बंधी समस्या की पहचान और इलाज आसानी से कर सकते हैं। ये समस्याएँ अक्सर शुरुआत में पहचान में नहीं आ पाती हैं और बाद में एक बडी परेशानी बनकर उभरती हैं। नए आविष्कारों के जरिए ऐसे बच्चों के जीवन की गुणवत्ता में सुधार लाना आसान होगा।
  इसी प्रकार से, जल्द एनसीडी स्क्रीनिंग से सीएचडी से बचाव सम्भव है और जल्द जांच व इलाज से हम बहुत सारे लोगों की जान बचा सकते हैं, जिससे टर्शरी केयर की सेवाओं पर मरीजों का दबाव भी काफी कम होगा।
  एलईएचएस विश (डब्ल्युआईएसएच) बायोटेक्नॉलजी विभाग के इंडस्ट्री रिसर्च असिस्टेंस काउंसिल (बीआईआरएसी), भारत सरकार के राष्ट्रीय स्वास्थ्य अभियान के साथ मिलकर दो नए आविष्कारों की शुरुआत की है। इन डिवाइस के क्लीनिकल प्रभावों और इनके इस्तेमाल सम्बंधी खर्च के बारे में विस्तृत जानकारी के लिए संस्था एक पायलट स्टडी करेगी।  यह लॉन्च विश (डब्ल्युआईएसएच) के उस लक्ष्य का एक हिस्सा है जिसके तहत नए आविष्कारों और तकनीकों की मदद से स्वास्थ्य देखभाल सम्बंधी समस्याओं का समाधान ढूंढ्ना है, सेवाओं को अधिक सस्ता और दूर-दराज के लोगों की भी पहुंच में लाना है। इस शुरुआत का उद्देश्य है बीमारियों के इलाज की प्रक्रिया प्राथमिक स्तर में ही शुरू करना, टर्शरी केयर की सुविधाओं पर मरीजों के बोझ को कम करना और एचडब्ल्युसी के स्तर पर सरकार को सहयोग करना,  जिसके तहत मौजूदा पीएचसी को एचडब्ल्युसी के सब सेंटर में बदलना, जहाँ सरकार द्वारा तय की गई सभी 12 आवश्यक सेवाएँ उपलब्ध होंगी।
दो नए इनोवेशन इस प्रकार हैं
 एटीओएम (एक्युरेट टेलीईसीजी ऑन मोबाइल) को मेडिकल रेडियोसोटोप तकनीक के साथ विकसित किया गया है जिसे भाभा एटॉमिक रिसर्च सेंटर (बीएआरसी) ने तैयार किया है, इसके लिए क्लीनिकल इनपुट सम्बंधी सहयोग नई दिल्ली स्थित एम्स के कार्डियोलॉजी विभाग ने दिया है और आर्थिक सहयोग बीएआरसी द्वारा प्रदान किया गया है। एटीओएम लगातार रेकॉर्ड होने वाले 12 लीड ईसीजी सिग्नल के क्लीनिकल क्वालिटी ट्रेस को एंड्रॉयड फोन पर उपलब्ध कराता है। इसके डाटा को वास्तविक समय में देखा जा सकता है और सिर्फ एक बटन दबाकर पूरी डीटेल को पीडीएफ फॉर्मैट में स्टैंडर्ड 12 लीड ईसीजी रेकॉर्ड के रूप में सेव भी किया जा सकता है। स्टैंडर्ड ट्रेसिंग के अतिरिक्त सभी 12 लीड्स की 10 सेकंड की रिदम ट्रेसिंग भी इसमें उपलब्ध कराई जाती है जो आमतौर पर सिर्फ महंगे ईसीजी मशीन में ही सम्भव होता है। डॉक्टर को मरीज के दिल से जुडी समस्या का सही पता लगाने में मदद के इए एक वेक्टर कार्डियोग्राम भी तीसरे पेज पर उपलब्ध कराया जाता है।
सोहम डिवाइस और सिस्टम के इस्तेमाल से नवजात बच्चों में सुनने की समस्या का पता लगाया जा सकता है और शुरुआत में ही उनका इलाज करके भविष्य में होने वाली अपंगता से उन्हें बचाया जा सकता है। यह एक कॉम्पैक्ट बैटरी से चलने वाली डिवाइस है जो गोल्ड स्टैंडर्ड ब्रेनस्टेम इवोक्ड रिस्पॉन्स पर ऑडियोमेटरी पर आधारित है और इसका इस्तेमाल कोई भी सामान्य हेल्थ वर्कर बेहद कुशलता के साथ कर सकता है। यह डिवाइस ऑटोमेटेड परिणाम उपलब्ध कराता है और यह टेलीमेडिसिन के साथ जुडा हुआ है जिससे मरीज तक इलाज की पूरी प्रक्रिया सम्बंधी जानकारी और सुविधा की पहुंच सुनिश्चित होती है। डिवाइस को क्लीनिकल ट्रायल में पूरी तरह से प्रभावी पाया गया है और इसमें किसी भी तरह के सिडेटिव के इस्तेमाल की जरूरत नहीं पडती, जांच में बेहद कम समय लगता है क्योंकि इसके लिए तैयारी और एनालिसिस में बेहद कम समय लगता है। यह मास स्क्रीनिंग के लिए उपयुक्त रहता है, इसका इस्तेमाल बार-बार किया जा सकता है और ऐसे में प्रक्रिया का खर्च भी काफी कम हो जाता है।
विश (डब्ल्युआईएसएच), नई दिल्ली के सीओओ राजेश सिंह कहते हैं, परम्परागत मशीनें आमतौर पर बेहद बडी और महंगी होती हैं,  जिन्हें ग्रामीण इलाकों में लेकर जाना और वहाँ के लोगों के लिए अफोर्डेबल बनाना कठिन होता है। डब्ल्युआईएसएच सरकारी और निजी सहयोगियों के साथ मिलकर सुविधाओँ की उपलब्धता के बीच की खाई को भरने का प्रयास कर रहा है। इसके लिए नई तकनीक और आविष्कारों पर आधारित सेवाएँ प्राथमिक हेल्थकेयर के स्तर पर उपलब्ध कराई जा रही हैं,  जो कि हर किसी की पहुंच में होंगी और सस्ती भी होंगी। ये दो आविष्कार हमारी उस पहल की दिशा में पहला कदम हैं, जिसके तहत हमने 2027 तक 50 नए इनोवेशन लेकर आने का लक्ष्य रखा है।
भारत में कार्डियोवस्कुलर बीमारियाँ मौत के बडे कारणों में से एक हैं, जिनकी संख्या 30 से 69 वर्ष आयुवर्ग के लोगों के बीच वर्ष 2015 में 1.3 मिलियन दर्ज की गई थी। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि , वर्ष 2000 से 2015 के बीच ग्रामीण इलाकों में भी कोरोनरी हार्ट डिजीज से होने वाली मौतों की संख्या भी काफी बढ गई है।
बीआईआरएसी ने यह महसूस किया है कि ‘‘एक छोटा कॉम्पैक्ट डिवाइस, जो कि मरीज के ईसीजी एनालिसिस को स्मार्टफोन के जरिए ग्रामीण इलाकों से डॉक्टर तक तुरंत भेज सकता है, बीमारी के जल्द जांच में बेहद मह्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है, जिसकी मदद से दूर-दराज में बैठे मरीज तक भी स्वास्थ्य देखभाल सम्बंधी सुझाव तुरंत उपलब्ध कराए जा सकते हैं, जो कि मौजूदा समय में सम्भव नहीं होता है। आज के समय में ग्रामीण इलाकों के लोगों को भी दिल की बीमारियों का खतरा उतना ही है जितना कि शहरी लोगों को। चूंकि ग्रामीण लोगों तक इलाज की बेहतरीन सुविधा उपलब्ध नहीं है, ऐसे में मरीज के स्वास्थ्य के साथ-साथ उसके परिवार के जीवनयापन का जरिया भी प्रभावित होने का खतरा अधिक रहता है। ऐसे में कम खर्च वाली बेहतरीन स्वास्थ्य सुविधाएँ उपलब्ध कराकर स्थिति में बडा बदलाव लाया जा सकता है।’’
 राजेश सिंह ने कहा, ‘‘इसी प्रकार से सुनने सम्बंधी समस्या की जांच सुविधाएँ भी मौजूदा समय में बहुत सारे लोगों के लिए काफी महंगी है। डब्ल्युएचओ की रिपोर्ट के अनुसार मौजूदा समय में दुनिया भर में 34 मिलियन बच्चे श्रवण सम्बंधी अक्षमता से पीडित हैं। इस जांच को राजस्थान में शुरू करने के साथ हमारा उद्देश्य है इसे सरकार के पीआईपी कार्यक्रम में शामिल करना। हमें पूरी उम्मीद है कि यह जांच बहुत सारे नवजात बच्चों के जीवन के जीवन में सुधार लाने में मददगार साबित होगी।’’

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