मुंबई। मैसाचुसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी में अर्थशास्त्र के फोर्ड फाउंडेशन इंटरनेशनल प्रोफेसर अभिजीत बनर्जी ने मुंबई में 9 जनवरीए 2019 को भारतीय निर्यात.आयात बैंक एक्ज़िम बैंक 34वां स्थापना दिवस वार्षिक व्याख्यान प्रस्तुत किया। प्रोफेसर बनर्जी एमआईटी में अब्दुल लतीफ जमील पावर्टी एक्शन लैब के सह.संस्थापक और निदेशक भी हैं। साथ ही भारत के योजना आयोग में मानद परामर्शदाता भी रहे हैं। उन्होंने यह स्थापना दिवस वार्षिक व्याख्यान श्सामाजिक नीति की पुनर्रचनाश् विषय पर दिया।
एक्ज़िम बैंक की स्थापना दिवस वार्षिक व्याख्यान माला की शुरुआत 1986 में बैंक के परिचालन शुरू होने के उपलक्ष्य में की गई थी। यह व्याख्यान अंतरराष्ट्रीय संबंधोंए वैश्विक व्यापारए निवेश प्रवाह और संबंधित आर्थिक विकास जैसे क्षेत्रों में नवीनतम रुझानों पर विमर्श को प्रोत्साहन देने का बैंक का एक प्रयास है और प्रबुद्धजनों के विचारों पर चिंतन.मनन करने का एक मंच है। बीते कुछ वर्षों में एक्ज़िम बैंक की इस वार्षिक व्याख्यान माला ने मुंबई के सार्वजनिक जीवन में एक महत्त्वपूर्ण स्थान बना लिया है।
प्रोण् बनर्जी ने अपने व्याख्यान में कहा कि भारत का सामाजिक नीति का ढांचा ऐसे समय में बनाया गया थाए जब भारत की गिनती दुनिया के गरीब देशों में की जाती थी। लेकिन आज भारत को इन नीतियों को नए सिरे से रचने की जरूरत है। उन्होंने सामाजिक नीति के अंतर्गत शिक्षाए स्वास्थ्य सेवाए रोजगारए सामाजिक सुरक्षा और शहरीकरण जैसे महत्त्वपूर्ण मुद्दों पर चर्चा की,जिन पर प्राथमिकता के आधार पर काम करने की जरूरत है। साथ ही इनके समाधान भी सुझाए।
प्रोफेसर बनर्जी ने इस बात का विशेष रूप से उल्लेख किया कि हालांकि पिछले वर्षों के मुकाबले आज भारत में स्कूलों में बच्चों का नामांकन बढ़ा है,लेकिन उन बच्चों का ज्ञान उनकी कक्षा के स्तर का नहीं है और इस स्थिति में कोई प्रगति नहीं हो रही है। उहोंने इस पर भी प्रकाश डाला कि जीवन प्रत्याशा बढ़नेए बचपन में कुपोषण और एंटीबायोटिक्स के प्रति बढ़ती प्रतिरोधात्मकता के चलते हमारा देश किसी गैर.संक्रामक बीमारी वाले संकट की ओर बढ़ रहा है। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि हमारा देश वृद्धिशील रूप से तृतीयक चिकित्सा पर ध्यान केंद्रित कर रहा है। जबकि हमें प्राथमिक चिकित्सा क्षेत्र में काम करने की जरूरत है,ताकि बीमारी की जांच पहले ही हो सके और स्वास्थ्य सेवा प्रदाता अधिक विश्वसनीय परामर्श दे सकें। उन्होंने इसके संभावित समाधान भी सुझाए। उन्होंने कहा कि ऐसे स्वास्थ्य सेवा प्रदाताओं को चिह्नित करनाए उनकी क्षमताओं के लगातार परीक्षणों और प्रमाणन के जरिए उनका विनियमन करना इसका संभावित समाधान हो सकता है।
प्रोफेसर बनर्जी ने इस बात पर भी जोर दिया कि हमारे देश में उतने रोजगारों का सृजन नहीं हो पा रहा हैए जितने रोजगारों की जरूरत है। उद्योगपतियों में यह आम धारणा बनती जा रही है कि उन्हें वैसे कुशल मानव संसाधन नहीं मिल रहे हैंए जैसा वे चाहते हैं। उन्होंने यह भी कहा कि बड़े सुधारों के बिना इसकी संभावना भी काफी कम दिखाई देती है कि निजी क्षेत्र में उतने रोजगारों का सृजन हो पाएगाए जितने भारतीय युवाओं को आने वाले समय में चाहिए। उन्होंने भारत के विनिर्माण क्षेत्र की समस्याओं पर भी प्रकाश डाला। उन्होंने ऐसे विशेष आर्थिक क्षेत्र बनाने का सुझाव दिया जो सिर्फ निर्यातों तक सीमित न हों और इन क्षेत्रों में बेहतर परिवहन इन्फ्रास्ट्रक्चर हो तथा इन्हें भूमि और पर्यावरण संबंधी मंजूरियां आसानी से मिल पाएं। देश में रोजगारों के सृजन के लिए यह एक समाधान हो सकता है।
प्रोफेसर बनर्जी ने इसका भी विशेष उल्लेख किया कि हमारे देश में तेजी से शहरीकरण हो रहा है। कई छोटे.छोटे कस्बे शहरों में तब्दील हो रहे हैं और बहुत से छोटे.छोटे गांव कस्बों का आकार ले रहे हैं। इस संबंध में उन्होंने अच्छे बुनियादी ढांचे की जरूरत पर जोर दिया।
भारतीय एक्ज़िम बैंक के प्रबंध निदेशक डेविड रस्कीना ने अपने स्वागत संबोधन में कहा कि बैंक की स्थापना दिवस वार्षिक व्याख्यान माला वैश्विक अर्थव्यवस्था को प्रभावित करने वाले व्यापार और विकास के समसामयिक विषयों पर विमर्श में महत्त्वपूर्ण योगदान दे रही है। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि ऐसे सुधारों की काफी संभावनाएं हैं,जो हमारे देश को तीव्रतर विकास की ओर ले जाएंगे। साथ ही उन्होंने शिक्षाए स्वास्थ्य सेवाए कौशल की कमी और रोजगारों तथा सामाजिक सुरक्षा तथा अन्य क्षेत्रों में सामने आने वाली समस्याओं के निराकरण के लिए भारत की सामाजिक नीति की पुनर्रचना के महत्त्व पर भी प्रकाश डाला। भारतीय एक्ज़िम बैंक के उप प्रबंध निदेशक देबाशिस मल्लिक ने कार्यक्रम के समापन में कहा कि प्रोफेसर अभिजीत का यह व्याख्यान संभावित नीतिगत समाधान प्रदान करने वाला रहा। ऐसे समाधान जो प्रासंगिक और ज्ञानवर्धक होने के साथ.साथ भारत के लिए महत्त्वपूर्ण भी हैं।
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