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Wednesday, April 3, 2019

जबरदस्त तनाव से घिरी हुई है, देश की 82 फीसदी आबादी-सिग्ना




India’s 82% of the Population Suffers from High Stress Levels, reveals the Cigna 360 Well-Being Survey 2019


मुंबई. स्वास्थ्य सेवा में अगुवा अमरीका आधारित सिग्ना कॉर्पोरेशन (एनवाईएसईः सीआई) और भारतीय साथी समूह टीटीके ग्रुप और मणिपाल ग्रुप के बीच एक संयुक्त उद्यम सिग्ना टीटीके हेल्थ इंश्योरेंस ने आज अपने 2019 सिग्ना 360 वेल-बीइंग सर्वे - वेल एंड बियॉन्ड के परिणाम जारी किए। सर्वेक्षण से पता चलता है कि यूएसए, ब्रिटेन, जर्मनी, फ्रांस और ऑस्ट्रेलिया जैसे अन्य विकसित और उभरते देशों की तुलना में भारत में तनाव का स्तर बहुत अधिक है। भारत की लगभग 82 प्रतिशत आबादी तनाव से पीड़ित है और सैंडविच पीढ़ी (35-49 वर्ष की आयु वाले) लगभग 89 फीसदी लोग तनाव से सबसे अधिक प्रभावित हैं। देश में तनाव के प्रमुख कारण काम, स्वास्थ्य, और वित्त से जुड़े मुद्दे हैं।
2019 सिग्ना 360 वेल-बीइंग सर्वे अब अपने पांचवें वर्ष में आ पहुंचा है, जिसमें पांच प्रमुख इंडेक्स - फिजिकल, फैमिली, सोशल, फाइनेंशियल और और वर्क में लोगों की वेल-बीइंग या खुशहाली की परख करना है। कई स्वास्थ्य संबंधी विषयों के अलावा यह सिग्ना का अब तक का सबसे व्यापक सर्वेक्षण है। इस साल के सर्वेक्षण में भारत के वर्कप्लेस वेलनैस प्रोग्राम्स पर रोशनी डाली गई है, जो बहुत व्यापह है और अन्य मार्केट्स की तुलना में इनमें भागीदारी दर उच्च है।
हृदय सबंधी स्वास्थ्य पर जागरूकता कम
जब उत्तरदाताओं से पूछा गया कि क्या उन्हें स्वयं के बॉडी मास इंडेक्स (बीएमआई) और ब्लडप्रैशर की जानकारी है या नहीं, हृदय स्वास्थ्य संकेतकों के बारे में जागरूकता दिखाने वाले वैश्विक औसत से भारत का प्रदर्शन कहीं अधिक बेहतर था। 61 फीसदी को अपने बीएमआई के बारे में पता है (वैश्विक स्तर पर 51 फीसदी की तुलना में) और भारत के 76 फीसदी अपने रक्तचाप की जानकारी रखते हैं जबकि तुलनात्मक आधार पर वैश्विक स्तर 66 फीसदी का है।
हालांकि, भारत में संभावित दिल की समस्याओं के संकेत माने जाने वाले 2.2 लक्षणों का पता है जबकि ऐसे लक्षणों के बारे में जानकारी का वैश्विक औसत 2.4 का है। इससे भी बदतर, पिछले छह महीनों में, उत्तरदाताओं ने वैश्विक स्तर पर 1.8 की तुलना में 2.3 लक्षणों की औसत संख्या का अनुभव किया। 3 में से 1 लोग यह नहीं जानते कि उच्च रक्तचाप को जीवनशैली में बदलाव के साथ नियंत्रित किया जा सकता है, यह हृदय के स्वास्थ्य सबंधी जानकारी में कमी का संकेत देता है, जबकि केवल 38 फीसदी उत्तरदाता हृदय  के स्वास्थ्य को ट्रैक करने और प्रबंधित करने के लिए वियरेबल्स का उपयोग करते हैं।
सिग्ना टीटीके हेल्थ इंश्योरेंस के एमडी और सीईओ प्रसून सिकदर कहते हैं, ‘यह बेहद चिंताजनक है कि 3 में से 1 व्यक्ति को नहीं लगता कि उच्च रक्तचाप के मामले में जीवनशैली के साथ बदलाव करते हुए इसे ठीक किया जाना चाहिए, इस मामले में अनुपचारित रहने परघातक दिल का दौरा या स्ट्रोक पड़ सकता है। चिंता का एक प्रमुख कारण यह है कि भारत ने पिछले 25 वर्षों में हृदय रोग और स्ट्रोक की घटनाओं में खतरनाक वृद्धि देखी है। इस प्रकार, मौजूदा स्वास्थ्य समस्या वाले लोगों के लिए हृदय रोग के जोखिम को कम करने और स्वास्थ्य की गुणवत्ता में सुधार लाने के लिए ही नहीं बल्कि हर किसी के लिए हृदय को स्वस्थ रखने वाली जीवन शैली के बारे में जागरूकता बढ़ाना अत्यंत महत्वपूर्ण है।’
सैंडविच पीढ़ी सबसे बदतर
अन्य पीढ़ियों की तुलना में, भारतीय सैंडविच पीढ़ी (35-49 वर्ष आयु वर्ग के) का प्रदर्शन समग्र इंडेक्स में सबसे कम रहा है यह खासतौर पर उनकी शारीरिक, वित्त और काम से संबंधित खुशहाली को लेकर चिंता जगाता है। बहुत तनाव से गुजर रही इस पीढ़ी में तनाव के स्तर और दबावों को कम करने की आवश्यकता है; यह आने वाले वर्षों में मुख्य कार्यबल होगी।
इस सेगमेंट के 89 फीसदी लोग तनाव से ग्रस्त है, जबकि तुलनात्मक रूप से सहस्राब्दी पीढ़ी में यह आंकड़ा 87 फीसदी और 50$ समूह में 64 फीसदी का है। नतीजे में, एक स्वस्थ वजन बनाए रखना उनके लिए एक चुनौती है और सैंडविच पीढ़ी के केवल आधे लोग ऐसा कर पाने में सक्षम रहे हैं, तुलनात्मक रूप से सहस्राब्दी पीढ़ी में 58 फीसदी और पुराने सेगमेंट में 55 फीसदी एक स्वस्थ वजन बनाए रखने में सक्षम है। आधे से भी कम लोग सोचते हैं कि वे आर्थिक रूप से अच्छा कर रहे हैं। वे अपने माता-पिता की चिकित्सा जरूरतों को पूरा करने के लिए उनकी वित्तीय क्षमता पर सवाल उठाते हैं। 58 फीसदी सहस्राब्दी और 50$ लोगों के 62 फीसदी की तुलना में सैंडविच पीढ़ी के केवल 51 फीसदी लोग अपनी क्षमता के बारे में आश्वस्त महसूस करते हैं।
महिलाओं की जरूरतों के आधार पर तैयार हो वर्कप्लेस वेलनैस प्रोग्राम
वैश्विक निष्कर्षों के विपरीत, भारत में पुरुष (85 फीसदी) कामकाजी महिलाओं (82 फीसदी) की तुलना में अधिक तनावग्रस्त हैं। हालांकि, जब यह असहनीय तनाव की बात आती है, तो अन्य स्थानों और बाजारों की तुलना में पुरुष और महिला दोनों 5 फीसदी की रिपोर्ट कर रहे हैं। अन्य बाजारों की तरह, अधिकांश महिलाओं (87 फीसदी) का मानना ​​है कि वर्कप्लेस वेलनैस प्रोग्राम को प्रत्येक जैंडर की विशिष्ट आवश्यकताओं को बेहतर ढंग से संबोधित करने की आवश्यकता है, जबकि 63 फीसदी को लगता है कि वरिष्ठ प्रबंधन इन कार्यक्रमों का गंभीरता से समर्थन नहीं करते हैं। महिलाओं के लिए तनाव के शीर्ष कारण बहुत अधिक काम, पारिवारिक वित्त चिंता और व्यक्तिगत स्वास्थ्य चिंताएं हैं।
अपेक्षाकृत भारत की हेल्थ वेलनैस आंकड़ों के बावजूद वर्कप्लेस वेलनैस प्रोग्राम को और बेहतर बनाने के लिए कई उपाय करने होंगे। मेंटल वेल-बीइंग को प्राथमिकता देते हुए और लचीली कार्य व्यवस्था के कार्यान्वयन के साथ शुरू करते हुए इस बात को ध्यान में रखा जाना चाहिए कि कामकाजी महिलाओं का जीवन चक्र कैसे भिन्न होता है और एकल महिलाओं की जरूरतें उन लोगों से कैसे अलग होती हैं जो विवाहित हैं और बच्चों के साथ हैं।
वर्कप्लेस वेलनैस हासिल करना
वैश्विक तौर पर केवल 36 फीसदी ने दावा किया कि उनके वर्कप्लेस पर वेलनैस प्रोग्राम हैं, भारत में यह आंकड़ा 66 फीसदी का है जबकि 56 फीसदी ने इनमें भाग लेना स्वीकार किया है। हालांकि, 71 फीसदी को लगता है कि ये कार्यक्रम मानसिक स्वास्थ्य की कीमत पर शारीरिक स्वास्थ्य पर ध्यान केंद्रित करते हैं। वैश्विक स्तर पर 28 फीसदी की तुलना में 59 फीसदी संतुष्टि दर (‘उन्हें लगता है कि समर्थन पर्याप्त है’) के साथ 71 फीसदी को नियोक्ता का समर्थन प्राप्त होता है। अभी भी सुधार की गुंजाइश है, यह देखते हुए कि 85 फीसदी ‘बहुत काम’ वाली संस्कृति में काम करते हैं, जो कि वैश्विक औसत 64 फीसदी से अधिक है।
उत्तरदाताओं के 96 फीसदी को लगता है कि सहयोगियों के तनाव ने वैश्विक औसत 91 फीसदी की तुलना में कार्यस्थल को प्रभावित किया है। दिलचस्प बात यह है कि भारत में, मुख्य प्रभाव सकारात्मक की ओर झुकता है और वैश्विक भावनाओं से भिन्न है। अपने सहकर्मियों के तनाव से सीख लेकर भारतीय अपने स्वयं के तनाव को प्रबंधित करने को लेकर अधिक जागरूक हैं और वैश्विक निष्कर्षों के विपरीत एक दूसरे का ज्यादा ध्यान रखते हैं, वहीं दुनिया भर में लोगएक निराशाजनक कार्य वातावरण, कम मनोबल और कम उत्पादकता को प्रमुख प्रभावों के रूप में उद्धृत करते हैं। ऐसा लगता है कि भारतीय नियोक्ता सही चल रहे हैं और अपने वैश्विक समकक्षों की तुलना में अधिक संतुष्ट और कम निराशावादी महसूस कर रहे हैं।
सिग्मा की थीम इस वर्ष वेल एंड बियॉन्ड है, जो व्यक्ति के समूचे कल्याण को प्राथमिकता देने का आह्वान है। लोगों को खुशहाली देने के अपने सफर से सिग्मा लोगों को सशक्त बनाना चाहती है, उनकी खुशहाली के लिए आवश्यकताओं और विकल्पों पर उन्हें नियंत्रण देती है और स्वास्थ्य के मामलों के बारे में जागरूकता बढ़ाने में मदद करने के लिए टूल्स देती है। पूरी रिपोर्ट पढ़ने के लिए, 2019 सिग्ना 360 वेल-बीइंग 

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