जयपुर। जन स्वास्थ्य में दुर्लभ बीमारियों को प्राथमिकता देने के लिये राजस्थान सरकार ने राजस्थान रेयर डिजीज़ वर्किंग ग्रुप बनाया है ताकि इस राज्य में दुर्लभ बीमारियों वाले मरीजों की जरूरतों को पूरा किया जा सके। इस समिति में न्यूरोलॉजी,एंडोक्राइनोलॉजी, गैस्ट्रोएंट्रोलॉजी, इंटरनल मेडिसिन,जेनेटिक्स और पीडियाट्रिक्स जैसे अलग-अलग विशेषज्ञता वाले 10 बहुविषयक सीनियर फिजिशियन शामिल हैं। ये सभी राजस्थान के अलग-अलग क्षेत्रों जैसे जोधपुर, जयपुर, अजमेर और बीकानेर से हैं। दुर्लभ बीमारियों को लेकर उपचार और जानकारी के बारे में जुड़ने और एक-दूसरे से विचार साझा करने के लिये हाल ही में उन्होंने मुलाकात की। राजस्थान सरकार की ओर से शामिल होने वाले प्रमुख अधिकारियों में थे- डॉ रोमेल सिंह, आरसीएच डायरेक्टर राजस्थान, डॉ. अशोक गुप्ता,एमएस, जेके लोन हॉस्पिटल, जयपुर और डॉ. समित शर्मा, स्पेशल सेक्रेटरी तथा एमडी एनएचएम,राजस्थान ।
इस बैठक में दुर्लभ बीमारियों को लेकर जागरूकता फैलाने की सबसे महत्वपूर्ण चुनौतियों के बारे में चर्चा की गयी, इसके साथ हिन्दी और अंग्रेजी भाषाओं में एलएसडी और आईईएम पोस्टर्स का अनावरण और विमोचन किया गया। उन पोस्टर्स को एलएसडीएसस के साथ मिलकर सरकारी मेडिकल कॉलेजों तथा स्वास्थ्य केंद्रों में एनएचएम राजस्थान के जरिये आधिकारिक रूप से प्रचारित किया जायेगा। उसमें प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र भी शामिल होंगे। एलएसडी तथा आईईएम की पहचान के लिये जागरूकता बढ़ाने के लिये उन पोस्टर्स को मरीजों तथा फिजिशियंस के अनुरूप तैयार किया गया है। इस एलएसडी पोस्टर में खासतौर से दिशा, डीबीएस डायग्नोस्टिक सर्विस के बारे में विशेष रूप से जिक्र किया गया है।
इस पहल के बारे में अपनी बात रखते हुए, दुर्लभ बीमारियों के विशेषज्ञ डॉ अशोक गुप्ता, जेके लोन हॉस्पिटल के सुपरिटेंडेंट ने कहा,’’दुर्लभ बीमारियों,खासतौर से लाइसोसोमल स्टोरेज डिसऑर्डर (एलएसडी) से ग्रसित मरीजों की जिंदगी बेहद अशक्त हो जाती है। प्रारंभिक रूप से ऐसा डायफंक्शनल एंजाइम्स की वजह से होता है। ये डिसऑर्डर कई बार क्रॉनिक हो जाते हैं और इससे मरीजों की जिंदगी की गुणवत्ता भी गंभीर रूप से प्रभावित होती है। दुर्लभ बीमारियों को एक समस्या के रूप में चिकित्सा जगत में जागरूकता फैलाने की यह एक बेहतरीन पहल है। इस जानकारीप्रद कार्य से इस समस्या की समय पूर्व जांच हो पायेगी, जोकि बाद में अन्य बीमारियों के लक्षणों से मिलने के कारण चुनौती बन जाती है।”
राजस्थान में लाइसोसोमल स्टोरेज डिसऑर्डर (एलएसडी) से पीड़ित 14 मरीजों की पहचान हुई है जिन्होंने इलाज के लिये राजस्थान सरकार को आवेदन दिया है। उनमें से 3 मरीजों की मौत जीवन रक्षक एंजाइम रिप्लेसमेंट थैरेपीज के ना मिल पाने के कारण हो गयी। राज्य स्वास्थ्य सरकार द्वारा इसे उपलब्ध ना करा पाने की असमर्थता के कारण ऐसा हुआ है।
मंजीत सिंह, माननीय अध्यक्ष एलएसडीएसएस ने कहा, ‘’दुर्लभ बीमारियों को लेकर जागरूकता फैलाने के लिये राजस्थान सरकार की पहल से उम्मीद की एक किरण नज़र आयी है। इन समस्याओं के लिये जागरूकता एक प्रमुख चीज है, लेकिन मरीजों की हालत में सुधार के लिये समय पर इसकी जांच इसका अहम हिस्सा है। इलाज में देरी करने से मरीजों के जीवन पर भावनात्मक और आर्थिक बोझ काफी ज्यादा बढ़ जाता है। राजस्थान एक प्रगतिशील कल्याणकारी राज्य है। हमें इस बात की पूरी उम्मीद है कि सरकार राज्य नीति को लागू करने के साथ दुर्लभ बीमारियों के मरीजों के उपचार की जरूरतों पर ध्यान देगी।‘’
उन्होंने आगे कहा, ‘’गर्भ धारण करने वाली मांओं के लिये प्रीनेटल जेनेटिक काउंसलिंग और टेस्टिंग होनी चाहिये,ताकि आनुवांशिक बीमारियों से बचाव किया जा सके। इससे आगे जाकर माता-पिता के साथ-साथ राज्य पर भी आर्थिक बोझ कम होगा।‘’
लोगों में दुर्लभ बीमारियों की जांच और उसके उपचार की जरूरत को समझना जरूरी है। स्वास्थ्य राज्य का विषय होने के कारण, इस संबंध में इस पहल के माध्यम से राज्य स्तर पर कार्यवाही करने से प्रभाव पड़ेगा। राजस्थान में दुर्लभ बीमारियों से जूझ रहे मरीजों को जल्द ही उपचार को लेकर एक सकारात्मक बदलाव देखने की उम्मीद है।
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