जब अनुभव बात करता है , जब जिज्ञासा शब्द रूप लेती है , जब दर्द आइना देखता है और जब एक ज़िन्दगी मुस्कुराकर हर चुनौती को स्वीकार करती है तब सिलसिला शुरू होता है मन की उलझनों का और ये उलझने जब कविमन की हथेलियों पे रख सहलाई जाती है तब बनती है " कुछ अधूरी बातें मन की .......
"
मन हमारा दर्पण होता है, हमारी पहचान, हमारा अपना प्रतिबिम्ब। मन, हमें देखता है , समझता है , हमसे बातें करता है। कई बार ऐसा भी होता है ज़िंदगी की आपाधापी और शोर शराबे के बीच मन की आवाज़ हम तक पहुँच नहीं पाती, दब कर रह जाती है। इस किताब के माध्यम से मनीष ने
कोशिश की है कि इसे पढ़ कर सभी प्रेरित हो मन की सभी बातों को हम सुने उस पर अमल करे . इस संग्रह का विमोचन पर मनीष ने कहा की उनकी इच्छा है की लोग इसे पढ़े मेरे विचार मेरी लेखनी और इस किताब के बारे में जान सके। और अपने मन की बातों को शब्द देने की ताकत लाएं
होटल मैरियट में आयोजित एक निजी कार्यक्रम में मनीष मूंदड़ा की किताब का विमोचन हुआ ।
इस अवसर पर वरिष्ठ साहित्यकार इकराम राजस्थानी
व पूर्व प्रशासनिक अधिकारी श्याम सुंदर बिस्सा उपस्थित रहे । और किताब की चर्चा करते हुए मन की अधूरी बातों पर चर्चा की ।
मनीष मूंदड़ा का फ़िल्मी दुनिया का सफर 2015 में " आँखों देखी " से शुरू हुआ आज एक मुकाम हासिल कर चुका है। चार फिल्मे मसान , धनक कड़वी हवा और न्यूटन नेशनल अवार्ड के लिए चुनी जा चुकी है। स्कूली शिक्षा देवगढ़ (बिहार ) में पूरी करने के बाद कालेज की पढ़ाई जोधपुर (राजस्थान ) में पूरी की। वर्तमान में नाइजीरिया ( अफ्रीका ) इंडोरामा फर्टिलाइज़र में एम् डी / सी इ ओ के पद पर कार्यरत है। मनीष ने बहुत ही कम समय में बतौर फिल्म प्रोड्यूसर अपने आपको स्थापित किया . और दृश्यम फिल्म्स की स्थापना की।
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