जयपुर। नोबेल शांति पुरस्कार से सम्मानित कैलाश सत्यार्थी द्वारा स्थापित बचपन बचाओ आंदोलन (बीबीए) ने जयपुर में एक दो दिवसीय विचार गोष्ठी का आयोजन किया। गोष्ठी में बाल अधिकारों का संरक्षण करने वाली अनेक सरकारी और स्वयंसेवी संस्थाओं ने भाग लिया। भाग लेने वाली संस्थाओं में पुलिस, एंटी ह्यूमन ट्रैफिकिंग यूनिट (एटीएचयू), बाल कल्याण समितियां (सीडब्ल्यूसी), राजस्थान राज्य बाल अधिकार संरक्षण आयोग (आरएससीपीसीआर), बाल अधिकार विभाग (डीसीआर) प्रमुख हैं।
विचार गोष्ठी के विचारोत्तेजक सत्र में भाग लेने वालों में राजस्थान के अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक (अपराध शाखा) बीएल सोनी, अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक (एटीएचयू) सुनील दत्त, डीसीआर निदेशक निशिकम दिवाकर, आरएससीपीसीआर सदस्य सीमा जोशी, सीडब्ल्यूसी अध्यक्ष नरेंद्र सिखवाल और बीबीए के मुख्य कार्यकारी अधिकारी समीर माथुर प्रमुख रहे।
अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक (अपराध शाखा) बीएल सोनी ने संकटग्रस्त बच्चों को बचाव और राहत पहुंचाने के लिए स्वास्थ्य विभाग सहित सभी एजेंसियों से मिल-जुलकर काम करने का आह्वान किया। सोनी ने इस बात पर जोर दिया कि पुलिस बल को पिछले वर्ष की तुलना में इस वर्ष 20 प्रतिशत अधिक बच्चों को बचाने का लक्ष्य रखना चाहिए। सोनी ने अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए कहा कि बाल संरक्षण की प्रक्रिया में विभिन्न हितधारकों की जवाबदेही और जिम्मेदारी बहुत मायने रखती है। पुलिस अधीक्षक (एसपी) को बाल श्रमिकों के बचाव के लिए भोजन और आवास की सुविधाएं प्रदान करने के लिए जवाबदेह ठहराया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि पीड़ित बच्चों को सरकारी सहायता मुहैया कराने में किशोर न्याय अधिनियम का अधिक महत्व है। अगर इस अधिनियम का पालन नहीं किया जाता है, तो कोई कारण नहीं कि बच्चों को ट्रैफिकिंग के बाद बालश्रम के दलदल में नहीं धकेल दिया जाए। सोनी ने यह भी सुझाव दिया कि स्वास्थ्य विभाग और अस्पतालों को बच्चों को नशामुक्ति में मदद करने के लिए कानून प्रवर्तन एजेंसियों के साथ सहयोग करना चाहिए।
बीबीए के मुख्य कार्यकारी अधिकारी समीर माथुर ने शोषण से बच्चों को मुक्त कराने में विभिन्न अधिनियमों के कार्यान्वयन को लागू कराने के लिए राज्य सरकार और पुलिस के द्वारा किए जा रहे प्रयासों की सराहना की। उन्होंने कहा कि राजस्थान देश का पहला ऐसा राज्य है जिसने बाल अधिकारों की सुरक्षा के लिए अलग से एक स्वतंत्र विभाग स्थापित किया है।
माथुर ने शीर्ष अदालत के उस निर्देश पर बल दिया, जिसमें बाल देखभाल संस्थानों के लिए निगरानी तंत्र को मजबूत करने की बात कही गई है। उन्होंने कहा कि 2018 के सुप्रीम कोर्ट के सम्पूर्णा बेहुरा जजमेंट के आलोक में किशोर न्याय अधिनियम को लागू करने की आवश्यकता है, जो स्पष्ट रूप से विभिन्न कानून प्रवर्तन और अन्य राज्य एजेंसियों की भूमिकाओं और जिम्मेदारियों को निर्धारित करता है।
एएचटीयू के अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक श्री सुनील दत्त ने इस अवसर पर कानून प्रवर्तन एजेंसियों द्वारा सामना की जा रही चुनौतियों को साझा किया और कहा कि प्रशिक्षित पुलिसकर्मियों का अभाव है। उन्होंने कहा कि पुलिसकर्मियों को बच्चों से संबंधित मुद्दों तथा सरोकार को समझने और इस पर कार्रवाई करने के लिए पर्याप्त संवेदनशील होने की दरकार है। इसके लिए उन्हें प्रशिक्षित करने की आवश्यकता है। उन्होंने पुलिस को और संवेदनशील बनाने के लिए गैरसरकारी संगठनों के साथ सहयोग की मांग की।
बाल अधिकारिता विभाग के निदेशक निशिकम दिवाकर ने सम्पूर्णा बेहुरा जजमेंट के महत्व पर जोर दिया और कहा कि उनके विभाग ने शीर्ष अदालत के 16 निर्देशों को लागू करने के प्रयासों को आगे बढ़ाया है। उन्होंने मुक्त बाल श्रमिकों को समाज की मुख्यधारा में शामिल करने के लिए उनके पुनर्वास और व्यावसायिक प्रशिक्षण पर जोर दिया।
इस विचार गोष्ठी का मुख्य उद्देश्य पुलिस और बाल कल्याण एजेंसियों सहित विभिन्न हितधारकों को संवेदनशील बनाना है। गौरतलब है कि गोष्ठी के जरिए बालश्रम के जाल में फंसे बच्चों को उबारने के लिए जो सुझाव या टिप्पणियां आएंगी, उन्हीं को आधार बनाकर कार्रवाई का एक व्यावहारिक ब्लूप्रिंट तैयार किया जाएगा। उल्लेखनीय है कि बीबीए राजस्थान में बालश्रम को खत्म करने के लिए राज्य सरकार के साथ मिलकर काम कर रहा है। नोबेल शांति पुरस्कार से सम्मानित बीबीए संस्थापक कैलाश सत्यार्थी राज्य में बाल संरक्षण इकाइयों को मजबूत करने और बाल विवाह को रोकने की खातिर इस साल की शुरूआत में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और उप मुख्यमंत्री सचिन पायलट से भी मुलाकात कर चुके हैं। वर्ष 2011 से अब तक बीबीए ने स्थानीय अधिकारियों की मदद से राज्य में अब तक 1443 बाल श्रमिकों को मुक्त कराया है।
बीबीए ने इस महीने सरकार और पुलिस के साथ मिलकर पूरे राज्य के बाल श्रमिकों को मुक्त कराने के लिए काम किया। इससे एक फायदा यह भी हुआ कि राजस्थान के सभी जिलों में जिला टास्क फोर्स (डीटीएफ) एक बार फिर से अस्तित्व में आया। बीबीए ने 2018 में किशोर न्याय अधिनियम और सीएलपीआरए अधिनियम पर राज्य की कानून प्रवर्तन एजेंसियों के लिए एक प्रशिक्षण शिविर का भी आयोजन किया था, जिसने एएचटीयू को पिछले साल अक्टूबर में रेड एंड रेस्क्यू ऑपरेशन चलाने में मदद की। बीबीए ने राज्य में 26 चाइल्ड केयर इंस्टीट्यूशन के आडिट में सीडब्ल्यूसी की सहायता की।
बच्चों की सुरक्षा को सर्वोच्च प्राथमिकता के रूप में लेते हुए राजस्थान सरकार स्कूल पाठ्यक्रम में बाल अधिकारों के समावेश को बढ़ावा देने के लिए काम कर रही है। दूसरी ओर बाल श्रम पर शिकायत की रिपोर्टिंग बढे, इसके लिए वह प्लेटफॉर्म फॉर इफेक्टिव इंफोर्समेंट फॉर नो चाइल्ड लेबर यानी पेंसिल पोर्टल का प्रभावी उपयोग करेगी।
गौरतलब है कि बीबीए कानून और इसके कार्यान्वयन के बीच अंतराल को मिटाने के लिए देशभर में इस तरह की विचार गोष्ठी का आयोजन कर रहा है। इस गोष्ठी में यह भी देखा गया कि किशोर न्याय (बच्चों की देखभाल और संरक्षण) अधिनियम, 2015 के तहत परिकल्पित कानूनी संरक्षण उस गति से संभव नहीं हो पा रहा है, जिस गति से इसे होना चाहिए। किशोर न्याय से जुड़ी कई समस्याओं से देश जूझ रहा है, जिसमें किशोर न्याय बोर्ड के समक्ष लंबित मामलों की संख्या में वृद्धि, किशोर न्याय बोर्ड्स में खाली पद, बाल मित्र अदालत की कमी, किशोरों का समुचित इलाज नहीं होना और बाल देखभाल संस्थानों की खराब स्थिति शामिल हैं। ये कमियां बच्चों के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन ही करती हैं।
विचार गोष्ठी में मुख्य रूप से सम्पूर्णा बेहुरा जजमेंट के आलोक में किशोर न्याय अधिनियम के कार्यान्वयन की स्थिति का आकलन किया गया। गौरतलब है कि जनहित याचिका (पीआईएल) पर फैसला देते हुए शीर्ष अदालत ने बाल देखभाल, पुनर्वास और रोकथाम के लिए सरकार को निर्देश जारी किए थे। साथ ही राज्य बाल संरक्षण सोसायटी, बाल अधिकारों के संरक्षण के लिए राज्य आयोगों, किशोर न्याय बोर्डों की स्थापना (जेजेबी) के भी निर्देश दिए थे। इसमें प्रत्येक जिले में उनके प्रशिक्षण, सीडब्ल्यूसी की स्थापना और उनके प्रशिक्षण, प्रोबेशन अधिकारियों की नियुक्ति और उनके प्रशिक्षण और हर पुलिस स्टेशन में विशेष किशोर पुलिस इकाइयों की स्थापना शामिल हैं।
बचपन बचाओ आंदोलन के बारे में
‘बचपन बचाओ आंदोलन’ (बीबीए) की स्थापना 1980 में नोबेल शांति पुरस्कार से सम्मानित बाल अधिकार कार्यकर्ता कैलाश सत्यार्थी ने की थी। बाल अधिकारों की रक्षा के लिए कानून लागू करने वाली एजेंसियों और नीति निर्माताओं के साथ काम करने के दृष्टिकोण से भारत का यह सबसे बड़ा गैर-सरकारी संगठन है। बीबीए ने पिछले 40 वर्षों में बंधुआ और बाल मजदूरों की मुक्ति और उनके अधिकारों के संरक्षण के लिए कई कानूनों के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। इस दौरान उसने जबरिया मजदूरी और दासता में जीवन जी रहे 88,000 से अधिक बच्चों को मुक्त कराया है। बीबीए ने बच्चों के हितों से जुड़े ढेरों सारी याचिकाएं भी दायर की हैं। जिसके कारण बाल शोषण के पीड़ितों की न्याय तक आसान पहुंच सुनिश्चित हो सकी है और उनके पक्ष में कई ऐतिहासिक निर्णय भी हुए हैं।
No comments:
Post a Comment