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Thursday, January 16, 2020

नए भारत में शारीरिक विकलांगों के कौशल से होगा समावेशी विकास का सपना पूरा







- प्रशांत अग्रवाल, नारायण सेवा संस्थान,प्रेसीडेंट-
लाखों दिव्यांगों को समाज में हर रोज कई तरह के अनुभवों से गुजरना होता है। उनके परिवार का अधिकांश समय, ऊर्जा और धन उनके पुनर्वास, भविष्य की सुरक्षा और समावेशी विकास में खर्च हो जाता है। आंकड़े कहते हैं कि शहरी क्षेत्रों की तुलना में ग्रामीण क्षेत्रों में दिव्यांग लोगों के साथ अधिक भेदभाव होता है। इसके अलावा, विकलांग व्यक्तियों का एक बड़ा तबका ग्रामीण गरीब परिवारों से आता है, जिनके पास जाहिर है कि बहुत कम सुविधाएं हैं।
विशेषज्ञों के सुझावों के अनुसार दिव्यांग लोगों को एक ऐसे प्लेटफार्म की जरूरत होती है जो उन्हें प्रभावी तौर पर शारीरिक, आर्थिक और सामाजिक पुनर्वास प्रदान कर सके। करेक्शनल सर्जरी, शिक्षा, विवाह आदि के जरिए यह पुनर्वास धीरे-धीरे चलता रहता है लेकिन इसके अलावा उन्हें अपने जीवन को सही तरीके से चलाने के लिए समुचित शिक्षा की भी आवश्यकता होती है। 2011 की जनगणना के अनुसार, भारत में 121 करोड़ की आबादी में से 2.68 करोड़ से अधिक लोग किसी न किसी तरह की विकलांगता से ग्रस्त थे।
विकलांग व्यक्तियों के अधिकार अधिनियम 2016, में 21 तरह की विकलांगता बताई गई है, जिनमें अंतरराष्ट्रीय मानकों के अनुरूप बौद्धिक और मनोवैज्ञानिक अक्षमता भी शामिल है। इसमें मस्तिष्क पक्षाघात विकलांगता, मानसिक बीमारियां, बौद्धिक विकलांगता सहित ऑटिज्म स्पेक्ट्रम डिसऑर्डर
शामिल हैं।
ग्रामीण क्षेत्रों में दिव्यांग लोगों के सामने मौजूद चुनौतियां-
2011 की जनगणना के अनुसार, विकलांग भारतीय आबादी का 45 फीसदी हिस्सा अशिक्षित है; इस समुदाय का एक बड़ा हिस्सा ग्रामीण भारत में रहता है। जनगणना बताती है कि शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में 60.21 फीसदी रोजगार की तुलना में 63.66 फीसदी विकलांग बेरोजगार हैं। भारत को विकलांग व्यक्तियों के लिए आधारभूत संरचनात्मक, संस्थागत और व्यवहार संबंधी बाधाओं को दूर करने के लिए काम करने की आवश्यकता है।
रोजमर्रा के जीवन में इन बाधाओं का सामना विकलांग लोग हर रोज करते हैं-
ग्रामीण क्षेत्रों में अलग-अलग विकलांग व्यक्तियों के प्रति समझ और सहानुभूति की कमी
संस्थानों, कार्यस्थल, बाजारों और अन्य सार्वजनिक स्थानों पर फिजिकल पहुंच नहीं
समाज में विकलांग व्यक्तियों के तनाव, चिंता, डर की परख के लिए अलग से कोई कम्युनिकेशन रणनीति नहीं है
बेहतर शिक्षा और रोजगार प्रदान करने के लिए ग्रामीण क्षेत्रों में विकलांगता जागरूकता कार्यक्रम नहीं है
किसी भी शैक्षिक प्रतिष्ठान में उन्हें लेने से पहले हमें उनकी क्षमता को पहचानने की आवश्यकता है ताकि वे बिना भेदभाव के एजुकेशन प्रोग्राम में हिस्सा ले सके
विकलांग छात्रों की व्यक्तिगत आवश्यकताओं पर ध्यान केंद्रित करना।
विकलांग लोगों के लिए विशेष सहायता और आवश्यक उपकरणों का अभाव है।
कौशल प्रदान करने में टेक्नोलॉजी की महत्वपूर्ण भूमिकाः
नए भारत में जीवन के शुरुआती वर्षों में ही विकलांग व्यक्ति को अपने विकास के लिए उचित शिक्षा की आवश्यकता होती है जिसे अब आसानी से तकनीक की मदद से उपलब्ध करवाया जा सकता है। छोटी-मोटी विकलांगता से लेकर कमजोरी से जुड़ी समस्याएं या अक्षमताएं, कक्षा और सामाजिक स्थितियों में सीखने समझने की बच्चे की क्षमता को प्रभावित करती हैं।
असिस्टिव टेक्नोलॉजी (एटी) यानी सहायक तकनीक कोई भी उपकरण, सॉफ्टवेयर या उपकरण है जो बच्चों को शैक्षिक कौशल, संचार सीखने में मदद करता है और उनका ध्यान भटकने नहीं देता। सहायक प्रौद्योगिकी उपकरणों में टेक्स्ट-टू-स्पीच (टीटीएस), डिक्टेशन (भाषण-से-पाठ) और शब्द भविष्यवाणी शामिल हैं। एटी टूल्स पढ़ने, लिखने, गणित और सुनने की समझ के संघर्ष को खत्म कर सकते हैं।
सहायक तकनीक की मदद से मोबिलिटी में बाधा, दृष्टिदोष; पर्सनल इमरजेंसी रिस्पॉंस सिस्टम और एक्सेसबिलिटी सॉफ्टवेयर; श्रवण दोष; संज्ञानात्मक हानि; भोजन करने में अक्षमता, खेल, शिक्षा, कंप्यूटर तक पहुंच और होम ऑटोमेशन आदि में मदद मिल सकती है।
विशेषज्ञों का संकेत है कि एटी एक सहायक, अनुकूली और पुनर्वास उपकरण है जो अलग-अलग प्रकार के होते हैं। यह तकनीक जीवन शैली को सुचारू करती है, उनकी कमजोरी पर काम करती है और उन्हें अधिक उत्पादक विद्यार्थी बनने में मदद करती है।
इस प्रौद्योगिकी की स्थापना के बाद से विकलांग व्यक्ति दुनिया भर में शैक्षिक सेवाएं प्राप्त कर सकता है। शारीरिक विकलांग लोगों के लिए कई ऑनलाइन और ऑफलाइन वोकेशनल कोर्स हैं। इन पाठ्यक्रमों में संचार प्रबंधन, आइओटी और एआई स्किल, वेब डवलपमेंट, डिजिटल मार्केटिंग, ऑनलाइन फाइनेंस और लेखा पाठ्यक्रम, डेटा साइंस पाठ्यक्रम और वैल्थ मैनेजमेंट शामिल हैं। इसमें, वे ऑनलाइन या ऑफलाइन सीख सकते हैं और आगे दुनिया भर में नौकरी पाने के लिए संस्थानों से अपना प्रमाण पत्र प्राप्त कर सकते हैं।
कई विश्वविद्यालय और संस्थान 3 महीने से 6 महीने की अवधि के व्यावसायिक पाठ्यक्रम प्रदान कर रहे हैं। इन पाठ्यक्रमों में से कुछ हैं-
1. डिजिटल फ़ोटोग्राफ़ीः फ़ोटोग्राफ़ी में मैनुअल मोड के बारे में सीखना, अपने आसपास के लोगों और जगहों की उच्च-गुणवत्ता वाली तस्वीरों को कैप्चर करना शामिल है। डिजिटल फोटोग्राफी की प्रक्रिया भी ऐसी ही है और इसमें डिजिटल तस्वीरों को कैप्चर करने, बनाने, संपादित करने और साझा करने के लिए इलेक्ट्रॉनिक और कंप्यूटिंग उपकरणों का उपयोग शामिल है। डिजिटल फोटोग्राफी कंप्यूटर पर डिजिटल तस्वीरों का निर्माण, प्रकाशन या उपयोग करना और उन्हें इंटरनेट पर प्रकाशित करना है। डिजिटल फोटोग्राफी के कुछ हिस्सों में डिजिटल कैमरा, कम्प्यूटिंग डिवाइस और डिजिटल फोटोग्राफी सॉफ्टवेयर शामिल हैं।
2. ग्राफिक डिजाइनः ग्राफिक डिजाइन में स्नातक की डिग्री होना आवश्यक है। हालांकि, छात्र ग्राफिक डिजाइन में तकनीकी प्रशिक्षण की तरफ भी जा सकते हैं। ग्राफिक डिजाइन पाठ्यक्रम में स्टूडियो आर्ट, डिजाइन के सिद्धांत, कम्प्यूटरीकृत डिजाइन, कमर्शियल ग्राफिक्स प्रोडक्शन, प्रिंटिंग टेक्नोलॉजी और वेबसाइट डिजाइन शामिल हैं। इसके लिए छात्रों को लेखन, विपणन और व्यवसाय का ज्ञान होना आवश्यक है। स्टेटिक्स के अनुसार, आगामी दस वर्षों में ग्राफिक डिज़ाइनर का जॉब मार्केट 5 प्रतिशत तक बढ़ सकता है। इसके अलावा, ग्राफिक डिजाइन कार्य की समझ और नियोक्ता की आवश्यकता को लक्षित करने के लिए उन्नत स्तरों के माध्यम से फोटोशॉप पाठ्यक्रमों को प्रारंभिक स्तर पर अपनाया जा सकता है।
3. पर्सनल फाइनेंसः यह कोर्स पर्सनल फाइनेंस को बढ़ाने और मनोरंजक तरीके से इसे समझाने के लिए बनाया गया है। इसका लक्ष्य टैक्स, निवेश, ऋण, बीमा और सेवानिवृत्ति को संभालना है। यही कारण है कि अधिकांश कॉलेज और प्रशिक्षण केंद्र अपने पाठ्यक्रम का उपयोग लघु वीडियो, आकर्षक और एनिमेटेड वीडियो की एक श्रृंखला के माध्यम से करते हैं, ताकि नई शुरुआत करने वाली भी इसे आसानी से समझ सकें।
4. मोबाइल ऐप डेवलपमेंटः सिस्को की 13वीं एनुअल विज़ुअल नेटवर्किंग इंडेक्स (वीएनआई) के अनुसार, 2022 तक भारत में 829 मिलियन स्मार्टफोन उपयोगकर्ता होंगे। यही कारण है कि हर स्टार्टअप और बड़े कॉर्पोरेट ग्रामीण भारत में जा रहे हैं और मोबाइल ऐप के जरिए अपना बाजार विकसित कर रहे हैं। टैबलेट, स्मार्टफोन, ऑटोमोबाइल और घड़ियों जैसे उपकरणों पर मोबाइल ऐप उपलब्ध हैं। पब्जी आगुमेंटेड रियलिटी या संवर्धित वास्तविकता गेम का एक लोकप्रिय उदाहरण है। एपल के आइओएस के बाद एंड्रॉयड ऑपरेटिंग सिस्टम सबसे अधिक लोकप्रिय है।
5. साइबर सिक्योरिटीः भारत में जितनी तेजी के साथ मोबाइल और सिस्टम यूजर बढ़ रहे हैं, उसके अनुरूप हमारे पास उचित साइबर सुरक्षा विशेषज्ञ नहीं हैं जो धोखाधड़ी वाली ईमेल और सोशल मीडिया के माध्यम से साइबर हमलों और डेटा उल्लंघन को रोक सकते हो। यही कारण है कि कंपनियां और कॉर्पोरेट अपनी रक्षा प्रणाली पर मोटा पैसा खर्च कर रहे हैं। ताकि उल्लंघनों, डेटा लीक, और अधिक दुर्भावनापूर्ण साइबर युद्ध के हमलों से बचा जा सके।
- प्रशांत अग्रवाल, नारायण सेवा संस्थान,प्रेसीडेंट -

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