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Sunday, March 8, 2020

आज के कॉर्पोरेट जगत में महिलाएं, काम और लैंगिग समानता


Canara HSBC OBC life insurance article on behalf of Tarannum Hasib, Chief Distribution officer, Canara HSBC OBC life insurance



हमारे दिमाग में यह बात बहुत गहराई से बैठा दी गई है कि हर पुरुष की सफलता के पीछे किसी न किसी महिला का हाथ होता है। पर अब समय आ गया है कि महिलाएं अपनी खुद की सफलता पर गर्व करें और परछाई से बाहर निकलें। अब इस बात को समझने का समय आ गया है कि जब हम यह मानें कि अपनी सफलता के लिए महिलाएं खुद जिम्मेदार हैं और वे किसी भी सूरत में पर्देे के पीछे नहीं रहती हैं।
सीमाएं तोड़ रही हैं महिलाएं
पूरी दुनिया में टॉप लीडरशिप में महिलाओं में भागीदारी 29 प्रतिशत तक बढ़ गई है। हालांकि भूमिकाओं के मामले में यह प्रतिशत अलग-अलग है, जैसे 43 प्रतिशत एचआर डायरेक्टर महिलाएं हैं, जबकि सेल्स या आईटी में सीनियर पोजीशन पर 17-18 प्रतिशत महिलाएं ही हैं। सभी सेक्टर्स में महिला लीडर्स को मिल रही सफलता से प्रेरित हो कर सभी संस्थानों को विभिन्न पोजीशंस पर महिलाओं के लाने के लिए वातावरण बनाना चाहिए।
हमारे संस्थान की सेल्स टीम में महिलाएं अच्छी सफलता प्राप्त कर रही हैं। वे फ्रंटलाइन से लीडरशिप रोल्स तक आ गई हैं। हमने वुमन अचीवर्स इन सेल्स जैसे प्लेटफार्म बनाए हैं। इसके जरिए सफलता प्राप्त करने वाली और दूसरी महिलाओं को सेल्स टीम में आने के लिए प्रोत्साहित करने वाली महिलाओं को बढ़ावा दिया जाता है।
कैनरा एचएसबीसी ओरियंटल बैंक ऑफ कॉमर्स लाइफ इंष्योरेंस कम्पनी लिमिटेड की चीफ डिस्ट्रीब्यूशन ऑफिसर  तरन्नुम हासिब कहती हैं, ‘‘सीएक्सओ होने के नाते हमें ऐसा वातावरण बनाना पडेगा, जहां महिला कर्मचारी खुद को अलग न समझें और उन्हें पुरुष साथियों के बराबर माना जाए। यह बहुत जरूरी है कि जिन क्षेत्रों को पुरुषों का क्षेत्र मान लिया गया है, वहां महिलाएं प्रवेश करें और जो क्षेत्र उन पर लम्बे समय से समाज द्वारा थोप दिए गए हैं, उन्हें छोड़ कर अपने लिए नए अवसर तलाश करें।‘‘
महिला लीडर्स ने पूरी दुनिया में यह साबित किया है कि लैैंंिगक आधार पर किसी को आगे बढ़ने से नहीं रोका जा सकता और समान अवसर देना न सिर्फ एक नैतिक कर्त्तव्य है बल्कि इससे अच्छे व्यवसायिक परिणाम भी मिले हैं।
मुश्किल प्राथमिकताओं का प्रबंधन
कामकाजी महिलाओं के लिए अपनी प्राथमिकताओं का प्रबंधन बहुत मुश्किल काम है। महिलाएं चाहे खेत पर काम करें या कॉर्पोरेट सेटअप में काम करें, धारणा यह बनी हुई है कि महत्वाकांक्षी और कॅरियर की चिंता करने वाली महिलाएं अपने परिवार के साथ समझौता करती हैं। जबकि मेरा यह मानना है कि बाहर मिलने वाला हमारा अनुभव हमें परिवार के साथ ज्यादा बेहतर ढंग से जोड़ता है और हम ज्यादा बेहतर समझ के साथ आगे बढ़ते हैं। हमें हमारी सफलता के लिए सम्मान मिलता है और निर्णय प्रक्रिया में  हमें शामिल किया जाता है। यह परिवार पर बहुत सकारात्मक असर डालता है।
इसलिए यह जरूरी है कि हम अपनी उपलब्धियों पर गर्व करें और प्रभावषाली भूमिका में आने के बाद हम उन व्यावहारिक समस्याओं और कठिनाइयों के बारे में स्पष्ट रूप से बात करें जो हमारी सफलता के बीच आती हैं। अक्सर युवा महिलाएं मेरे काम और परिवार के बीच संतुलन से काफी प्रभावित होती हैं। मैं उन्हें बताती हूं कि हम बेकार ही खुद को इस बात के लिए दोषी मानती हैं कि हम अपने परिवार को समय नहीं दे पातीं। सबसे अहम बात खुद को दोषी मानने की इस भावना से निकलना ही है। मेरी बेटियां बताती हैं कि उनके पास मुझसे श्ोयर करने के लिए ऐसा बहुत कुछ होता है, जो उनकी सहेलियां अपनी मांओं से षेयर नहीं कर  पाती हैं। मैं उनकी भावनाओं को ज्यादा बेहतर ढंग से समझ पाती हूं। शायद इसका कारण यह है कि मैं विभिन्न आयुवर्ग के कई लोगों से रोज संवाद करती हूं। यह बहुत अच्छा अनुभव होता है। हमने हमारे संस्थान में महिलाओ का एक अनौपचारिक समूह बनाया है, जहां हम दोस्तों या साथियो की तरह, इस तरह के अनुभव श्ोयर करते हैं। और इस तरह एक दूसरे से सीखते व प्रेरित होते हैं।
ईकोसिस्टम बनाना
हमें ऐसे मुद्दों पर ध्यान केन्द्रित करना चाहिए जो महिलाओं के लिए कुछ अलग कर सकते हैं। जैसे कॅरियर में एक ब्रेक कामकाजी महिलाओं के लिए बड़ी बात हो सकती है। हमें ऐसा ईकोसिस्टम बनाना चाहिए जो महिला कर्मचारियों को उनके जीवन के अहम चरणों जैसे शादी या मातृत्व के समय सहायता करे।
छह माह का मातृत्व अवकाश बहुत अच्छी बात है, लेकिन हमें मातृत्व से सम्बन्धित विश्रामकाल के बारे में भी सोचना चाहिए। कार्यस्थल पर क्रेच जैसी सुविधाएं, फ्लेक्सी टाइमिंग्स, कमबैक स्कीम जैसे निर्णय युवा महिलाओं और खास तौर पर माताओं को कॅरियर में ब्रेक लेने से बचाएंगी। जहां ये कदम महिलाओं के लिए हैं, वहीं महिलाओं के लिए एक अच्छा ईकोसिस्टम तभी बन पाएगा जब संस्थान द्वारा पुरुषों को भी उनकी पितृत्व सम्बन्धी जिम्मेदारियां उठाने के लिए प्रेरित किया जाएगा और इसके लिए पितृत्व अवकाश सम्बन्धी नीतियों में सुधार करने पर विचार करना होगा।
आर्थिक आजादी की जरूरत
भारतीय महिलाएं अपने वित्तीय फैसले परिवार के पुरुष सदस्यों पर छोड़ देती हैं। चौंकाने वाली बात यह है कि कामकाजी महिलाओं में भी सिर्फ 23 प्रतिषत ही अपने वित्तीय फैसले खुद करती हैं।
आज की महिलाएं स्वतंत्र हैं और अपने फैसले चाहे वो वित्तीय हों या कोई दूसरे, खुद लेने में सक्षम हैं। इसका कारण यह है कि उनकी जरूरतें पुरुषों से अलग हैं। आर्थिक स्थिरता भी परिवार में आपकी स्वीकार्यता को बढ़ाएगी। अब समय आ गया है कि हम महिलाओं में भरोसा जताएं कि वे निवेष, रिटायरमेंट, स्वास्थ्य और भविष्य सम्बन्धी अपने फैसले खुद लें और भाग्य के भरोसे न रहें।
एक महिला सीएक्सओ होने के नाते और वित्तीय सेवाओं में होने के नाते मेरी प्राथमिकता है कि महिलाओं के लिए फाइनेंशियल प्लानिंग की वर्कशॉप्स की जाएं, ताकि वे अपने कॅरियर और निजी जिंदगी को प्रभावित करने वाले निर्णय पूरी जानकारी के साथ कर सकें।
लीडर्स को महिलाओं की अंदरूनी ताकत को बाहर लाकर उसका बेहतर इस्तेमाल करना चाहिए, बजाए इसके कि उन्हें पुरुष साथियों की क्षमता हािसल करने के लिए कहा जाए। अनुसंधान बताते हैं कि किसी भी संस्थान की सफलता में वैविध्य वाली कर्मचारी क्षमता का बहुत बड़ा योगदान होता है।
सीएक्सओ के रूप में हम इस विविधता को बनाए रख सकते हैं और एक ऐसा निष्पक्ष ईकोसिस्टम बना सकते हैं, जहां महिलाएं सफलता प्राप्त करें और अपने कॅरियर की महत्वाकांक्षाओं को पूरा कर सकें।

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