बैंगलोर, जुलाई 2019 : अनूठी सीएसआर परियोजना, प्रोजेक्ट एबीसीडी (अ बिहेवियोरल चेंज थ्रू डिमांसट्रेशन) पर प्रो. उत्कर्ष मजूमदार और नम्रता राणा लिखित (अंग्रेजी के) एक केस स्टडी (अध्ययन), "टोयोटा किर्लोस्कर मोटर्स : एक सीएसआर परियोजना का मूल्यांकन" को प्रकाशन के लिए स्वीकार किया गया है। टोयोटा किर्लोस्कर मोटर के सीएसआर केस स्टडी को प्रतिष्ठा वाले इवे पबलिशिंग द्वारा प्रकाशन के लिए स्वीकार किया गया है। भारत सरकार के “स्वच्छ भारत मिशन” के समर्थन में प्रोजेक्ट एबीसीडी की शुरुआत 2015 में हुई थी और इसे 527 स्कूलों में लागू किया जा रहा है जो कर्नाटक के रामनगर जिले में 44773 बच्चों को कवर करेंगे ताकि गांवों में जनस्वास्थ्य और सैनिटेशन को बेहतर किया जा सके।
भारत दुनिया का दूसरा सबसे ज्यादा आबादी वाला देश है। एक अरब से ज्यादा नागरिकों वाले देश में रिकार्ड के मुताबिक लगभग 522 लोग खुले में शौंच जाते हैं। विश्व बैंक का अनुमान है कि भारत में 21 प्रतिशत संक्रामक बीमारियों का संबंध असुरक्षित पानी और हाईजीन व्यवहार की कमी है। डायरिया से रोज देश में पांच साल से कम के 500 से ज्यादा बच्चों की मौत होती है।
सैनिटेशन (स्वच्छता) सुविधाओं की कमी से स्थानीय समुदायों में स्वास्थ्य के गंभीर खतरे पैदा होते हैं जो खासतौर से महिलाओं और किशोर बच्चों की सुरक्षा को प्रभावित करते हैं। स्थानीय समुदायों में स्थायी सैनिटेशन व्यवहार हासिल करने के लिए टीकेएम ने दुतरफा तरीका अपनाया : पहले स्कूलों और घरों में साफ-सफाई और स्वच्छा सुविधाओं का विकास करना और फिर इसके प्रभाव को बनाए रखने के लिए ‘अ बिहेवियोरल चेंज थ्रू डिमांसट्रेशन’ प्रोग्राम के जरिए काम करना।
टोयोटा एबीसीडी प्रोग्राम भारत में खुले में शौंच खत्म करने के सरकार के स्थायी विकास लक्ष्य में महत्वपूर्ण योगदान करता रहा है। कर्नाटक के स्थानीय गांवों के बच्चे इसमें शामिल होने से हिचकते थे या फिर शौंचालय की कमी और हाईजीन के मसले को लेकर स्कूल छोड़ देते हैं। लड़कियों के लिए सैनिटेशन गंभीर मसला था। खुले में शौंच के कारण इन्हें सुरक्षा और स्वास्थ्य संबंधी जोखिमों का सामना करना पड़ता था। गतिविधियां चलाने और एकदम जमीनी स्तर पर जागरूकता फैलाने के लिए टीकेएम ने स्नेहा नाम के एक गैर सरकारी संगठन (एनजीओ) से गठजोड़ किया। छात्रों, शिक्षकों और ग्रामीणों को खुले में शौंच के अस्वास्थ्यकर प्रभावों के बारे में बताया गया। साथ ही हाथ धोने, शौंचालयों की सफाई और संक्रमण से बचने के लिए सावधानी बरतने वाले उपायों के बारे में बताया गया।
टीकेएम का मानना है कि बच्चे प्रेरक के रूप में काम करेंगे और एबीसीडी के उपयोग से वे समाज में बड़ा प्रभाव पैदा कर सकेंगे। एबीसीडी प्रोग्राम और टीकेएम की भागीदारी से प्रोत्साहन तथा बच्चों के दृढ़ निश्चय के परिणामस्वरूप परिवारों ने समुदाय के लिए सैनिटेशन के काम करना शुरू कर दिया है। शौंचालय निर्माण के लिए सरकारी योजनाओं की बदौलत निवासियों ने अपनी सैनिटेरी इकाइयां बनवाई हैं और इनमें टीकेएम का कोई आर्थिक सहयोग नहीं है।
लड़कियों के लिए टीकेएम की सैनिटेशन पहल और एबीसीडी परियोजना लागू किए जाने के कारण स्कूल छोड़ने का समय भी काफी कम हो गया है (पहले लड़कियां शौंचालय का उपयोग करने के लिए घर जाती थीं और स्कूल में एक से दो घंटे पढ़ाई का नुकसान होता था)। वर्ष 2018-19 आने तक टीकेएम ने कर्नाटक के रामनगर जिले के 1000 स्कूलों में 100% सैनिटेशन कवर करने का लक्ष्य तय किया है ताकि राज्य को खुले में शौंच से मुक्त किया जा सके। अनूठे डिजाइन वाले इस सीएसआर प्रोग्राम के जरिए अभी तक 2,70,000 से ज्यादा की ग्रामीण आबादी सैनिटेशन पर प्रशिक्षित की जा चुकी है। इसके साथ ही समाज को इस बात के लिए प्रेरित किया गया है कि वे घरों में शौंचालयों के निर्माण की शुरुआत करें और उसे पूरा करें।
इसके अलावा, प्रोजेक्ट एबीसीडी को आईआईएम के दो प्रोफेसर ने केस स्टडी के रूप में लिया था और ईवे पबलिशिंग द्वारा प्रकाशित किया गया है। बिजनेस केस स्टडीज प्रकाशित करने में यह अग्रणी है।
इस उपलबधि के बारे में बताते हुए टोयोटा किर्लोस्कर मोटर के प्रबंध निदेशक श्री मसाकाजु योशिमुरा ने कहा, “हमें खुशी है कि हमारी अनूठी सीएसआर पहल, प्रोजेक्ट एबीसीडी, जिसकी शुरुआत कर्नाटक के गांवों में हुई थी को अब अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मान्यता मिली है। हमें इस बात से जोरदार प्रोत्साहन मिलता है कि सैनिटेशन सुविधाओं को बेहतर करने के हमारे समर्पित प्रयासों से स्थानीय समुदाय की मनःस्थिति बदल रही है तथा इससे हमें एक ऐसे मामले में मान्यता मिली है जो हावर्ड बिजनेस रीव्यू केस कलेक्शन में उपलब्ध है। इस परियोजना के प्रबंध के लिए टीकेएम ने टोयोटा बिजनेस प्रैक्टिसेज मेथॉडोलॉजी को अपनाया है। इसके तहत समस्या कहां होती है उसकी पहचान की गई, मूल कारण का विश्लेषण किया किया, इसे गतिविधियों में तोड़कर लक्ष्य तय किए और फिर नतीजों की समय समय पर माप की गई ताकि प्रभाव को अधिकतम किया जा सके और लक्ष्य गांवों में 100% सैनिटेशन का उद्देश्य पूरा किया जा सके।
गांवों में हम सैनिटेशन के स्तर को लेकर बढ़ती जागरूकता देखते रहे हैं और यह देखकर अच्छा लगता है कि स्कूली बच्चों और उनके परिवार पर इस परियोजना का प्रभाव हुआ है और यह उनके व्यवहार में परिवर्तन के रूप में सामने आता है। प्रोजेक्ट एबीसीडी द्वारा लगातार लगातार पैदा की गई जागरूकता का फायदा यह हुआ है कि 407 स्कूली बच्चे घर में शौंचालय का उपयोग करने लगे हैं। व्यवहार में बदलाव लाने के लिए दिए गए प्रशिक्षण के परिणामस्वरूप रामनगर जिले के गांवों में 12517 शौंचालय का निर्माण कराया गया है। यह हमारे इस विश्वास का सबूत है कि स्वास्थ्य और हाईजीन के व्यवहारों को बनाए रखने के लिए व्यवहार में बदलाव लाना जरूरी है।”
लाभार्थियों में एक, इंदिरम्मा जो रामनगर के बिलगुम्बा स्थित राजकीय उच्च विद्यालय में कक्षा आठ की छात्रा, मोनिशा की मां हैं, ने कहा, “हमारे घर में सैनिटेशन की सुविधा पहले कभी नहीं थी। इसलिए, हमें इसके होने के फायदों का पता ही नहीं चला। पर मेरी बेटी घर पर सैनिटेशन सुविधा होने और इसके निर्माण को लेकर बेहद दृढ़ निश्चय थी। वास्तविक अंतर का पता मुझे तब लगा जब मैंने इसका उपयोग करना शुरू किया। मैं शिक्षित नहीं थी। मैं अपनी बेटी को कुछ सीखा नहीं पाई। अब जब मेरी बेटी शिक्षित है, वह न सिर्फ सही व्यवहारों का पालन कर रही है बल्कि मुझे सीखा भी रही है। और इसका पूरा श्रेय टीकेएम की परियोजना एबीसीडी पहल को जाता है।”
आज की तारीख तक टीकेएम ने देश भर के 237 सरकारी स्कूलों में 79 सैनिटेशन सुविधाओं का निर्माण कराया है। इनमें वाराणसी (उत्तर प्रदेश में) 124 यूनिट, रामनगर जिले में 497 यूनिट, बैंगलोर में 80 यूनिट और वैशाली, बिहार में 94 यूनिट्स शामिल हैं।
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