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Thursday, September 26, 2019

पायल को अमेरिका के न्‍यूयार्क में बिल एंड मेलिंडा गेट्स फाउंडेशन ने ‘चेंजमेकर’ पुरस्‍कार से किया सम्‍मानित



 Rajasthan's 17 year ol Payal Jangid Becomes "First Indian" to win the coveted Goalkeepers Global Goals Changemaker Award


जयपुर। मात्र 17 साल की पायल की आंखों की चमक और उसकी दृढ इच्‍छाशक्ति हमें यह पता देने का काम करती हैं कि होनहार बीरवान के चिकने पात शायद ऐसे ही होते हैं। पायल ने 12-13 साल की उम्र में अपने आस-पास सामाजिक बुराइयों का जब पसरा वातावरण देखा, तो उसका कोमल और संवेदनशील मन चीत्‍कार उठा और वह उसके खिलाफ विद्रोह करने लगी। शुरू-शुरू में तो उसके परिवार और समाज के लोगों ने इसे पायल का ‘बचपना’ कहा, लेकिन धीरे-धीरे लोग पायल को समझने लगें। आज के दिन स्थिति यह है कि राजस्‍थान के दूर-दराज हिंसला और उसके आस-पास के इलाकों में पायल को लोग गंभीरता से लने लगे हैं। पायल का महत्‍व तब और बढ़ गया जब वह बाल मित्र ग्राम (बीएमजी) की सरपंच (प्रधान) चुनी गईं। पायल ने तो उस दिन बच्‍चों के सम्‍मान में नगीने और हीरे जड़ दिए जब उसे 2013 में बच्चों के अधिकारों के संरक्षण के लिए ‘वर्ल्‍डस चिल्‍ड्रेनस प्राइज’ का जूरी बनाया गया। पायल के बाल अधिकारों के लिए अनवरत संघर्ष और असाधारण उपलब्धियों को देखते हुए ही बिल एंड मेलिंडा गेट्स फाउंडेशन ने उसे ‘चेंजमेकर’ पुरस्कार से सम्मानित करने का निर्णय लिया।

पायल जांगिड़ अपने जीवन संघर्ष को काव्‍यात्‍मक और प्रतीकात्‍मक अंदाज में समझाते हुए कहती हैं-“हर रविवार की सुबह मैं एक खेत के पास टहलती हूं। खेत के चारों ओर पेड़ ही पेड़ हैं। मैं खेत के चारों ओर जब चक्‍कर लगा रही होती हूं तो देखती हूं कि एक बच्‍चा है जो पिंजड़े में कैद है।‘’ पायल आगे कहती हैं-‘’पिंजड़े में बैठा बच्‍चा अपने अस्तित्‍व के बारे में सोचता है। बच्‍चा सोचता है कि अभी उसका अस्तित्‍व पिंजड़े तक ही सीमित है। अगर उसको अपने अस्तित्‍व का विस्‍तार करना है, तो उसको पिंजड़ा तोड़कर उससे बाहर निकलना होगा। वह पिंजड़ा को तोड़ने में किसी तरह कामयाब हो जाता है। फिर पिंजड़ा के बाहर उसके अस्तित्‍व का विस्‍तार ही विस्‍तार है।‘’ कहना नहीं होगा कि ‘वर्ल्‍डस चिल्‍ड्रेनस प्राइज’ की जूरी अपने सपनों को कुछ इस परिपक्‍व अंदाज में बयां करती हैं।

कैलाश सत्‍यार्थी चिल्‍ड्रेन्‍स फाउंडेशन  की परियोजना बाल मित्र ग्राम (बीएमजी) की एक समर्पित यौद्धा के रूप में 2013 में पायल जब समुदाय में बदलाव लाने का काम कर रही थीं, तभी वह नोबेल शांति पुरस्‍कार से सम्‍मानित श्री कैलाश सत्‍यार्थी के संपर्क में आती हैं और श्री सत्‍यार्थी का उन्‍हें विश्‍वास प्राप्‍त होता है। श्री सत्‍यार्थी पायल पर गर्व करते हैं और उन्‍हें लगातार प्रोत्‍साहित करने का काम कर रहे हैं।

गौरतलब है कि पायल ने अपने गांव में अन्‍य बच्‍चों के साथ मिलकर बाल विवाह और घूंघट प्रथा (घूंघट से अपना चेहरा ढंकने वाली महिलाएं) जैसी सामाजिक बुराइयों के खिलाफ अपना विरोध शुरू किया था। एक साल के अंदर गांव में बहुत कुछ बदलते देखा गया। महिलाओं के साथ-साथ बच्चे भी सड़कों पर निकलने लगे और अपने-अपने अधिकारों के बाबत खुलकर बातें करने लगे। आखिरकार हिंसला एक बाल विवाह मुक्त गांव बना। इसका श्रेय पायल को जाता है।

2013 में स्वीडिश काउंसिल के सदस्‍य जब पायल के काम की समीक्षा करने हेतु हिंसला पहुंचे, तो वे प्रभावित हुए बगैर नहीं रह सके और बच्चों के अधिकारों के संरक्षण के लिए पायल को ‘वर्ल्‍ड्स चिल्‍ड्रेनस प्राइज’ का जूरी बनाया। पायल की खुशी का ठिकाना नहीं रहा। स्वीडन जाकर उन्‍हें अपने जैसे अन्य लोगों से मिलने का अवसर मिला तथा एक ऐसे माहौल से वह अवगत हुईं, जिसने उन्‍हें उनके चुने हुए मार्ग पर चलने को प्रशस्‍त किया। स्‍वीडन में पायल को वहां की महारानी से भी मिलाया गया, जो उसे गर्वानुभूति से भर देता है।

बाल प्रधान के रूप में पायल ने न केवल बच्चों को बल्कि गांव की महिलाओं को भी सशक्‍त करने के ख्‍याल से सामाजिक-सांस्‍कृतिक गतिविधियों से जोड़ा। उन्होंने गांव की महिलाओं के विभिन्‍न समूहों और युवा मंचों को अपने से जोड़कर रैलियों और विरोध प्रदर्शनों का आयोजन किया। बाल अधिकारों की प्रवक्‍ता के तौर पर वह किसी भी प्रकार के अन्‍याय की समाप्ति की खातिर बच्चों से गोलबंद होने का आह्वान करती हैं। पायल कहती हैं-‘’बच्‍चों को जब तक इस बात का अहसास नहीं होगा कि उसके भी कुछ अधिकार हैं, तब तक वे उसको हासिल करने के लिए आगे नहीं आएंगे। लेकिन इसके लिए यह भी जरूरी है कि बच्‍चों का कोई मार्गदर्शन भी करें।

पायल राजस्‍थान के जिस हिंसला गांव से आती है, गौरतलब है कि वह एक बाल मित्र ग्राम (बीएमजी) है। हिंसला को 2012 से बीएमजी का दर्जा प्राप्‍त है। बीएमजी से अभिप्राय ऐसे गांव से है जिसके 6-14 साल की उम्र के सभी बच्‍चे बाल मजदूरी से मुक्‍त कराए गए हों और सारे बच्‍चे स्‍कूल जाते हों। वहां चुनी हुई बाल पंचायत हो, जिसे ग्राम पंचायत द्वारा मान्यता प्रदान की गई हों। वहां बच्‍चों को गुणवत्‍तापूर्ण शिक्षा के साथ-साथ उनमें नेतृत्‍व क्षमता के गुण भी विकसित किए जाते हों। बच्‍चों के द्वारा गठित बाल परिषद् या बाल संसद (बाल पंचायत) गांव में बाल अधिकारों से संबंधित मुद्दों को उठाती हो और उन अधिकारों को सुनिश्चित करने के लिए स्थानीय संवैधानिक निकाय, ग्राम पंचायत के साथ समन्वय करती हो।

बीएमजी मॉडल के एक हिस्‍से के रूप में बाल पंचायत (बच्चों की संसद) को भी अस्तित्व में लाया गया है। इसीलिए पायल जब बाल पंचायत की प्रधान बनीं, तो उन्हें बीबीए के कार्यकर्ताओं द्वारा उनकी भूमिकाओं और जिम्मेदारियों से अवगत कराया गया। उल्‍लेखनीय है कि नेतृत्व क्षमता को विकसित करने और निर्णय लेने की प्रक्रिया में हिस्‍सा लेने के मुख्‍य उद्देश्‍य से बाल पंचायत की व्‍यवस्‍था दी गई। बीएमजी मॉडल के ये सर्वोपरि स्तंभ हैं। जाहिर है कि पायल ने इन दोनों खूबियों का परिचय दिया।
अब तक भारत में 600 से अधिक बीएमजी स्थापित किए जा चुके हैं। भारत में इस मॉडल की सफलता को देखते हुए इसका नेपाल और युगांडा जैसे देशों में भी विस्‍तार किया गया है। नेपाल में वर्तमान में 100 और युगांडा के 20 गांवों में यह व्‍यवस्‍था अस्तित्‍व में है।


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