मुंबई।“मुद्राओं में डॉलर का वही स्थान है, जो भाषाओं में अंग्रेजी का है।” लंदन बिजनेस स्कूल में अर्थशास्त्र की लॉर्ड बागरी प्रोफेसर हेलेन रे ने भारतीय निर्यात-आयात बैंक (एक्ज़िम बैंक) के 35वें स्थापना दिवस वार्षिक व्याख्यान में यह बात कही। उनके व्याख्यान का विषय था- वित्तीय वैश्वीकरण और अंतरराष्ट्रीय वित्तीय बाजार। प्रो. हेलेन रे ने अपने व्याख्यान में इस बात को रेखांकित किया कि यूएस डॉलर प्रभुत्व वाली मुद्रा है। अंतरराष्ट्रीय कर्ज का लगभग 62.2 प्रतिशत, अंतरराष्ट्रीय ऋणों का 56.3 प्रतिशत और विदेशी मुद्रा भंडार का 62.7 प्रतिशत यूएस डॉलर में ही है। उन्होंने यह भी कहा कि व्यापार इन्वॉइस के मामले में भारत सबसे अधिक डॉलराइज देश है।
प्रो. रे ने इस बात पर भी प्रकाश डाला कि अंतरराष्ट्रीय व्यापार, अंतरराष्ट्रीय बैंकिंग और आस्ति बाजारों में डॉलर का प्रभुत्व आर्थिक झटकों और मैक्रोइकनॉमिक नीतियों के अंतरराष्ट्रीय ट्रांसमिशन को किस प्रकार प्रभावित करता है। उन्होंने कहा कि अंतरराष्ट्रीय वित्तीय लिंकेज काफी तेजी से बढ़े हैं। इससे दूसरे देशों पर नीतिगत उपायों का प्रभाव भी बढ़ा है। उन्होंने बताया कि डॉलर के प्रभुत्व वाली व्यवस्था में यूएस फेडरल रिजर्व की मौद्रिक नीति किस प्रकार पूरे वैश्विक वित्तीय चक्र को प्रभावित करती है। और फिर किस तरह दूसरे देशों में वित्तीय संस्थाओं की बैलेंस शीट और उनकी जोखिम वहन क्षमता को प्रभावित भी करती है।
इस अवसर पर, एक्ज़िम बैंक के प्रबंध निदेशक डेविड रस्कीना ने भी अधिक वित्तीय उदारता के साथ आने वाली अनिश्चितताओं पर प्रकाश डाला। उन्होंने बताया कि सैद्धांतिक रूप से, उभरते बाजार वाली अर्थव्यवस्थाओं में बढ़ता पूँजी प्रवाह विकास में सहयोगी होगा। लेकिन वास्तविकता में, वित्तीय उदारता दुधारी तलवार साबित हुई है। इससे उभरते बाजार वाली अर्थव्यवस्थाएं विदेशी झटकों से बुरी तरह प्रभावित होती हैं। उन्होंने यह भी कहा कि हाल के समय में अमेरिका द्वारा लिए गए नीतिगत फैसलों का असर अंतरराष्ट्रीय मौद्रिक व्यवस्था पर स्पष्ट दिखाई देता है और कुछ नकारात्मक प्रभाव तो परेशान कर देने वाले हैं।
प्रो. हेलेन रे ने अपने व्याख्यान में अमेरिका के वर्ल्ड बैंकर या बीमाकर्ता बने रहने में आने वाली कठिनाइयों का भी जिक्र किया। उन्होंने कहा कि वह व्यवस्था जिसमें डॉलर प्रभुत्व वाली अंतरराष्ट्रीय मुद्रा है, वह समय के साथ अस्थिर होती जा रही है, क्योंकि वैश्विक अर्थव्यवस्था में अमेरिकी अर्थव्यवस्था तुलनात्मक रूप से संकुचित हो रहा है और शेष विश्व में डॉलर देयताएं लगातार बढ़ रही हैं। अंतरराष्ट्रीय मौद्रिक व्यवस्था के वर्तमान स्वरूप की अस्थिरता को ध्यान में रखते हुए प्रो. रे ने अंतरराष्ट्रीय मौद्रिक व्यवस्था में भावी परिवर्तनों पर भी चर्चा की।
यूएस डॉलर के विकल्पों का विश्लेषण करते हुए प्रो. रे ने कहा कि डॉलर को यूरो से कड़ी टक्कर मिल सकती है। लेकिन यूरो क्षेत्र के अपूर्ण आर्किटेक्चर और संपूर्ण यूरो क्षेत्र में सुरक्षित आस्ति का अभाव यूरो के अंतरराष्ट्रीकरण में सबसे बड़ी बाधा है। प्रोफेसर रे ने चीनी रेन्मिनबी के संदर्भ में कहा कि व्यापार इन्वॉइसिंग और विदेशी वित्तीय ट्रांजैक्शनों के लिए चीनी रेन्मिनबी का प्रयोग बढ़ा है, लेकिन चीन द्वारा किए जाने वाले पूंजी नियंत्रण और देश में अर्द्धविकसित वित्तीय व्यवस्था, अंतरराष्ट्रीय बाजारों में इसकी स्वीकार्यता में बाधा पैदा करते हैं।
प्रो. रे ने उभरती प्राइवेट, डिजिटल और क्रिप्टो करंसी पर भी चर्चा की, जो अंतरराष्ट्रीय मौद्रिक व्यवस्था में हलचल पैदा कर रही हैं। इसके अतिरिक्त उन्होंने हाईटेक अंतरराष्ट्रीय भुगतान और निपटान व्यवस्था विकसित करने के लिए मुख्य केंद्रीय बैंकों के बीच होने वाली संभावित होड़ पर भी बात की। भुगतान के इस प्रकार के डिजिटल नेटवर्क से सूचनाओं के केंद्रीकरण में सहायता मिलेगी और दंडात्मक कार्रवाई समुचित रूप से की जा सकेगी, जो वर्तमान मौद्रिक व्यवस्था में नहीं है।
इस व्याख्यान का आयोजन एक्ज़िम बैंक की स्थापना दिवस वार्षिक व्याख्यान माला के क्रम में किया गया। इसकी शुरुआत 1986 में बैंक के परिचालन शुरू होने के उपलक्ष्य में की गई थी। यह व्याख्यान माला अंतरराष्ट्रीय संबंधों, वैश्विक व्यापार, वित्त, निवेशों के प्रवाह और संबंधित आर्थिक विकास में नवीनतम रुझानों पर विमर्श को बढ़ावा देने और विशेषज्ञों को एक मंच पर लाने के बैंक के प्रयासों को दर्शाती है। गत वर्षों में एक्ज़िम बैंक की इस वार्षिक व्याख्यान माला ने मुंबई के सार्वजनिक जीवन में एक महत्त्वपूर्ण स्थान बना लिया है।
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