एग्रीबाजार की वेबीनार में विशेषज्ञों ने प्रभावी रोडमैप पर की अर्थपूर्ण चर्चा
जयपुर। एग्रीकल्चर उत्पादों की खरीद-बिक्री के प्रमुख प्लेटफार्म एग्रीबाजार द्वारा शुक्रवार को शाम 5:30 बजे से 7:30 बजे तक सरसों का उत्पादन बढ़ाने व अन्य विषयों पर वेबीनार के माध्यम से अर्थपूर्ण चर्चा का आयोजन किया। वेबीनार में सॉल्वेंट एक्सट्रैक्टर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया के अध्यक्ष और अदानी विल्मर लिमिटेड के निदेशक अतुल चतुर्वेदी ने कहा कि सरसों के उत्पादन को बढ़ाने के लिए हमें इसकी यील्ड बढ़ाने पर जोर देना होगा। उन्होंने कहा कि पिछले 20 से 25 वर्षों में ऑयलसीड के उत्पादन में कोई ग्रोथ नहीं हुई है। देश में करीब 23 मिलियन टन तिलहन की आवश्यकता है जबकि करीब 7 मिलियन टन ही प्रोडक्शन हो रहा है। उन्होंने कहा कि यह सब पॉलिसियों में खामियों के चलते हो रहा है। उन्होंने सुझाव दिया कि गेहूं और चावल की तरह तिलहन को भी फूड सिक्योरिटी के साथ जोड़ देना चाहिए। उन्होंने कहा कि पंजाब व हरियाणा में जलस्तर कम हो रहा है और ऐसे में वहां के किसानों को मस्टर्ड/ येलो रिवॉल्यूशन से जोड़ना चाहिए। इसके लिए किसानों को इंसेंटिव देना चाहिए और उन्हें सरकारी खरीद से पर्याप्त समर्थन देना चाहिए। उन्होंने सुझाव दिया की सरकार को आयातित खाद्य तेलों पर युक्तियुक्त सेस लगाना चाहिए और प्राप्त राशि को तिलहन उत्पादन के शोध व इंसेंटिव पर खर्च करना चाहिए।
वेबीनार में रुचिसोया इंडस्ट्रीज लिमिटेड के सीईओ संजीव अस्थाना ने सुझाव दिया कि सरकार को न्यूनतम समर्थन मूल्य पर खरीद को पर्याप्त समर्थन देना चाहिए। आयातित खाद्य तेलों पर आयात कर बढ़ाकर आयात को निरुत्साहित करना चाहिए। किसानों से खरीद पर इंसेंटिव देना चाहिए। किसान तिलहन विशेषकर सरसों की उपज बढ़ाने में सक्षम हों, इसके लिए भारतीय कृषि शोध संस्थानों को समर्थन देना चाहिए।
वेबीनार में नेफेड के अतिरिक्त प्रबंध निदेशक एस.के सिंह ने कहा कि भारत की विशाल जनसंख्या के चलते यहां पर तिलहन की पर्याप्त मांग है। ऐसे में तिलहन विशेषकर सरसों उत्पादन बढ़ाने को राष्ट्रीय मौके के रूप में विकसित करना चाहिए। उन्होंने कहा कि अच्छी किस्म के बीजों से सरसों का उत्पादन करने की आवश्यकता है। इसके लिए किसानों से ऑयल कंटेंट के आधार पर खरीद की प्रथा को विकसित करना चाहिए। उन्होंने कहा कि देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी आत्मनिर्भर भारत मिशन के तहत तिलहन उत्पादन बढ़ाने को प्राथमिकता दे रहे हैं। उन्होंने हाल ही में उत्तर-पूर्व की एक सभा में देश को पाम तेल उत्पादन में आत्मनिर्भर बनने की बात कही है।
वेबीनार में संदीप बाजोरिया, विजय डाटा, डॉक्टर बी.वी मेहता और अनिल कुमार चतर जैसे प्रमुख तिलहन विशेषज्ञों ने भी सरसों का उत्पादन बढ़ाने व इत्यादि विषयों पर अर्थपूर्ण तथ्य प्रस्तुत किए। वेबीनार में विशेषज्ञों की ओर से सरसों के संदर्भ में सबसे प्रमुख तथ्य यह निकल कर आया कि कि वर्ष 1995 से सरसों का उत्पादन 75 से 80 लाख टन के दायरे में चल रहा है जबकि इसके गुणों को देखते हुए इसकी घरेलू मांग निरंतर बढ़ती जा रही है। ऐसे में सरकार को इंडस्ट्री के सभी स्टेकहोल्डर जैसे किसान, उद्यमी, शोधकर्ता, व्यापारी के साथ मिलकर ऐसी पॉलिसी बनानी चाहिए जिससे सरसों का उत्पादन 200 लाख टन के स्तर पर पहुंच सके।
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