ध्यान दिए जाने वाले बिंदु
- बेमौसम बारिश से मौजूदा फसल प्रभावित होने की आशंका।
- घरेलू खपत और निर्यात मांग पर कीमतों का निर्भर होना।
- दक्षिण भारत में अधिक बारिश के कारण हल्दी की गुणवत्ता प्रभावित होने की आशंका।
-अधिक उत्पादन क्षेत्र और पर्याप्त कैरीओवर स्टॉक।
आरोग्यवर्धक कमोडिटी हल्दी ने हाल के वर्षों में 6000 के स्तर पर मजबूत आधार बनाया है। वर्ष 2021 में भी इसमें इसी आधार को बनाए रखा और आपूर्ति की कमी के बीच मुसलमान के कारण अच्छी शुरुआत की। हल्दी की कीमतें 9522 के उच्च स्तर पर पहुंच गई। कम उत्पादन की आशंकाओं के साथ ही अधिक घरेलू खपत और निर्यात मांग की संभावना से हल्दी के अधिकतम आवक से ठीक पहले कीमतों को मदद मिली। इसके अलावा 2021 महामारी का दूसरा वर्ष था। घरेलू बाजार में हल्दी की अधिक खपत के कारण देश में हल्दी का स्टॉक घटकर 5 साल के निचले स्तर पर आ गया क्योंकि सरकार ने कोविड की रोकथाम और हल्की या बिना लक्षणों वाले रोगियों के उपचार के लिए हल्दी दूध, काढा और योग जैसे आयुर्वेदिक उपचारों का उपयोग करने की हिमायत की। लेकिन अगली दो तिमाहियों हल्दी के लिए अच्छी नहीं रही थी और नए सीजन की आवक के कारण कीमतों में गिरावट हुई और इस अवधि के दौरान दूसरा लॉकडाउन भी हुआ था। फिर से अंतिम तिमाही में लॉकडाउन को समाप्त किए जाने और त्योहारी एवं मौसमी मांग के कारण हल्दी की कीमतों में तेजी दर्ज शुरू हुई व इसकी कीमतें 9100 रुपए के करीब पहुंच गई। साथ ही दक्षिण भारत में अत्यधिक बारिश के कारण फसल के नुकसान के बीच गुणवत्ता को लेकर आशंका पैदा हुई। महाराष्ट्र और कर्नाटक में खड़ी फसल में बाढ़ से जलमग्न हो गई और लगभग 30 से 40 फ़ीसदी फसल प्रभावित हुई।
2020 में रिकॉर्ड निर्यात के बावजूद हल्दी का उत्पादन क्षेत्र पिछले वर्ष से कम रहा है। बागबानी विभाग के तीसरे अग्रिम अनुमानों के अनुसार 2020-21 में हल्दी का उत्पादन पिछले वर्ष के 11.93 लाख टन के मुकाबले 7% कम होकर 10.64 लाख टन हुआ, क्योंकि कीमतें किसानों के लिए उत्साहजनक नहीं होने से उत्पादन क्षेत्र कम रहा था। 2020-21 में भारत ने पिछले वर्ष के 1.37 लाख टन के मुकाबले 1.71 लाख टन हल्दी का निर्यात किया था। मध्य पूर्व, अमेरिका, यूरोप और दक्षिण पूर्व एशिया से अधिक होने के कारण हल्दी की निर्यात मांग में वृद्धि हुई। हल्दी के लिए प्रमुख निर्यात गंतव्य बांग्लादेश, यूएई, ईरान, यूएसए और मोरक्को रहे। स्टॉकिस्टों को बांग्लादेश से अधिक मांग प्राप्त हुई, जहां रेल रेक द्वारा हल्दी भेजी गई थी।
2021 में मजबूत घरेलू और निर्यात मांग के कारण हल्दी की कीमतें 5 वर्ष के उच्चतम स्तर पर पहुंच गई और किसानों को लाभ हुआ है। वर्ष 2021-22 सीजन में बेहतर मूल्य प्राप्ति की उम्मीद में तेलंगाना, आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु और कर्नाटक के प्रमुख उत्पादक क्षेत्रों में पिछले वर्ष की तुलना में उत्पादन क्षेत्र में बढ़ोतरी हुई है। लेकिन हमने दक्षिण भारत में हल्दी उत्पादन क्षेत्र में लगातार बारिश देखी है, इसलिए फसल के नुकसान की आशंका है, जो हल्दी के उत्पादन और गुणवत्ता को प्रभावित कर सकती है, जिससे किसानों को अधिक कीमत मिली थी।
इसके अलावा 2020 और 2021 में कोविड संकट के बीच हल्दी की अधिक खपत और निर्यात से अगले सीजन के लिए शेष बचा स्टॉक कम हो गया है, जबकि उत्पादन भी नहीं बढ़ा है। भारतीय मसाला बोर्ड के आंकड़ों के अनुसार जनवरी 2020 के बाद हल्दी का निर्यात 30% की वृद्धि के साथ 3 लाख टन हो गया है और 2021 से कैरी फॉरवर्ड स्टॉक पिछले 4 वर्षों में सबसे कम रहने का अनुमान है। सीजन 2021-22 में अप्रैल से अक्टूबर के दौरान हल्दी का निर्यात पिछले वर्ष की समान अवधि के निर्यात की तुलना में 23% कम होकर लगभग 89850 टन रह गया है,लेकिन पिछले 5 वर्षों के औसत निर्यात से अधिक है।
2021 में घरेलू खपत और निर्यात दोनों के रिकॉर्ड उच्च स्तर पर होने के कारण, कम कैरीओवर स्टॉक और प्रतिकूल मौसम के कारण वर्तमान समय में हल्दी की कीमतें वार्षिक आधार पर 35% से भी अधिक बढ़ गई है। जैसे ही नई हल्दी बाजार में आएगी, इसके औषधीय गुणों के कारण इसकी देशभर में अधिक मांग होगी। इसी तरह हल्दी का निर्यात बढ़ने की भी उम्मीद है। हल्दी बाजारों में आगे चलकर तेजी का रुझान रहने की उम्मीद है क्योंकि स्टॉकिस्ट और कारोबारी लंबे समय के ठहराव के बाद फिर से सक्रिय हो गए हैं जबकि दक्षिण भारत में नई फसल की कटाई नए वर्ष की शुरुआत में होने की संभावना है। मंडियों में आवक से एक बार कीमतों पर दबाव बन सकता है लेकिन इससे नीचे के भावों में कारोबारियों को हल्दी खरीदने का मौका भी मिलेगा।
मंडी विशेषज्ञों को उम्मीद है कि कीमतों में तेजी आएगी क्योंकि इस वर्ष में नया सीजन में मौसमी मूल्य बदलाव के अनुसार शुरू होगा। पहली तिमाही के दौरान कीमती अधिक होगी क्योंकि अच्छी गुणवत्ता वाली हल्दी की कीमतें अधिक होती हैं जबकि दूसरी तिमाही में बाजार में नए सीजन की फसल की भारी आवक पर कीमतें 6000 से ₹7000 तक लुढ़क सकती हैं। कैलेंडर वर्ष की दूसरी तिमाही में कीमतें हल्दी की बुवाई की प्रगति के साथ आपूर्ति और मांग की बुनियादी बातों पर निर्भर करेगी। वर्ष 2022 में हल्दी की कीमतें ₹11000 तक भी बढ़ सकती है।
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