2022 में किस और रहेगा जीरा का रुझान ? - Karobar Today

Breaking News

Home Top Ad

Post Top Ad

Monday, January 3, 2022

2022 में किस और रहेगा जीरा का रुझान ?

 

jeera report-2022




3 सालों से जीरा की कीमतों में गिरावट दर्ज की जा रही थी लेकिन 2021 के अंत में जाकर जीरा किसानों और व्यापारियों ने
 राहत की सांस ली है क्योंकि इसकी कीमत में सुधार हुआ है। 2021 की शुरुआत में गुजरात में जीरे के अधिक उत्पादन की संभावनाओं के चलते जीरा की कीमतें के 7 वर्ष के निचले स्तर करीब ₹12500 प्रति 100 किलो के करीब पहुंच गई थी। दूसरी तिमाही में मामूली गिरावट के बाद सीरिया, अफगानिस्तान और तुर्की में राजनीतिक अस्थिरता के कारण इसकी कीमतों में फिर से सुधार दर्ज किया गया। कुल मिलाकर अच्छी घरेलू मांग, बेहतर निर्यात और मानसून के शुरुआती महीनों में कम बारिश के कारण 2021 में जीरे की कीमतों में 28% से अधिक वृद्धि दर्ज की गई। वहीं विश्व स्तर पर जीरा उत्पादन में कमी की आशंका से भी जीरा की कीमतों को बल मिला। भारतीय जीरे के सस्ता होने से इसके निर्यात को भी बढ़ावा मिला है। 2021 की दूसरी तिमाही में भारत वस्तुतः दुनिया में जीरा का एकमात्र प्रमुख आपूर्तिकर्ता बन गया और 2020-21 (अप्रैल-मार्च) में जीरा का निर्यात लगभग 40 फ़ीसदी बढ़कर 2.99 लाख टन हो गया। इसके अलावा भारत में कैलेंडर वर्ष 2021 (जनवरी से अक्टूबर) में 2 टन से अधिक जीरा का निर्यात किया, जो कि पिछले वर्ष की समान अवधि के लगभग बराबर है। अमेरिका, यूरोपीय संघ और लैटिन अमेरिका के साथ-साथ चीन से भी जीरे की निर्यात मांग प्राप्त हुई है जिससे जीरा के निर्यात में वृद्धि दर्ज की गई। 
     मोबाइल पैटर्न को देखा जाए तो 2020 में कम कीमतों के कारण गुजरात और राजस्थान के किसान जीरा का उत्पादन क्षेत्र बढ़ाने को लेकर अधिक इच्छुक नहीं थे। इन दोनों राज्यों के किसानों ने धनिया, चना, अदरक और सरसों जैसी फसलों की खेती को प्राथमिकता दी। मसाला बोर्ड के आंकड़ों के अनुसार जिला का उत्पादन क्षेत्र वर्ष 2020 के 12.8 लाख टन से लगभग 3 फीसदी घटकर 2021 में 12.4 हेक्टेयर रह गया।  गुजरात के कृषि निदेशालय की नवीनतम आंकड़ों के अनुसार किसानों ने 13 दिसंबर तक 274300 हेक्टेयर में जीरा की बुवाई की है जबकि पिछले वर्ष की समान अवधि में 453700 हेक्टेयर में बुवाई हुई थी। 12 दिसंबर तक राजस्थान में जीरे का रकबा 5.19 लाख हेक्टेयर से अधिक आंका गया है, जबकि वर्ष 2020 की समान अवधि में यह 5.5 लाख हेक्टेयर था। जो की बुवाई की रफ्तार धीमी है, इसलिए इस वर्ष कम उत्पादन की उम्मीद से व्यापारियों की ओर से मांग भी बढ़ रही है और स्टॉकिस्ट माल को  रोक कर रख रहे हैं। वर्तमान समय में भारत वैश्विक स्तर पर जीरा का प्रमुख आपूर्तिकर्ता बना हुआ है क्योंकि तुर्की, सीरिया और अफगानिस्तान जैसे अन्य आपूर्तिकर्ता देशों से जीरे की आवक कम हो रही है। 
   वर्तमान में जीरा पिछले वर्ष की कीमतों की तुलना में 18% अधिक की कीमतों पर कारोबार कर रहा है और इसमें तेजी का रुझान बना हुआ है क्योंकि बुवाई की रफ्तार धीमी है। अगले सीजन में जीरा की कीमतें मुख्य रूप से बुवाई क्षेत्र और उत्पादन में पूर्वानुमान, फसल विकास चरणों के दौरान मौसम, कैरीओवर स्टॉक और निर्यात मांग पर निर्भर करेगी। कम बुवाई के कारण 2021-22 में बाजार को कम उत्पादन का अनुमान है। बाजार विशेषज्ञों के अनुसार गुजरात के किसान इस मौसम में इसबगोल, तिलहन और दालों को उनकी मौजूदा अधिक कीमतों के कारण पसंद कर रहे हैं। आगे कीमतों में उतार-चढ़ाव जीरे की निर्यात मांग और गुणवत्ता पर निर्भर करेगी। मार्च में कटाई शुरू होने से पहले मौसम संबंधी किसी भी गड़बड़ी से कीमतों में मदद मिल सकती है। कटाई के मौसम के दौरान सामान्य और अनुकूल मौसम को ध्यान में रखते हुए पहली तिमाही के अंत में नई आवक के साथ कीमतों में कुछ गिरावट देखने को मिल सकती है जो लंबी अवधि के कारोबारियों के लिए खरीदारी का एक अच्छा अवसर हो सकता है। मार्च-अप्रैल के बाद खरीदारी मामूली रूप से शुरू होगी और जून-जुलाई तक इसमें तेजी आने की संभावना है। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर जुलाई के बाद से आपूर्ति होने से कीमतों में बढ़त सीमित हो सकती है। लेकिन फिर भी 2022 में जीरे की कीमतों में तेजी का रुझान रहने की संभावना है और कुछ महीनों में जीरे की कीमतें 18000 से 21,000 रुपए प्रति 100 किलो के स्तर तक पहुंच सकती है। 

No comments:

Post a Comment

Post Bottom Ad