जयपुर । " मुक्ताकाश " 50 कविमन संग्रह है, जो देश विदेश के कुछ नए कुछ पुराने, कुछ परिपक्व और कुछ परिपक्व होने की कोशिश में इन सभी के शब्द ,एक संग्रह के रूप में आपके समक्ष उपस्थित हुए है ,जिसका सम्पादन अंशु हर्ष ने किया है और इसका विमोचन साहित्य कार नन्द भारद्वाज , शिक्षाविद व् समीक्षक दुर्गा प्रसाद अग्रवाल, व् समाज सेवी सुधीर माथुर द्वारा अजमेर रोड स्थित मिनी पंजाब रेस्टॉरेंट मे किया गया।
मन का पंछी जब एक उड़ान भरता है तो मन में कई भाव जन्म लेते है और ये भाव कलम के जरिये कागज पर उतरने की कोशिश करते है। कई बार ये कोशिश सफल रहती है और कई बार असफल, इन्ही तमाम कोशिशों का साझा संकलन है ' मुक्ताकाश। मुक्ताकाश इसलिए की मन के आकाश में उड़ते शब्दों को कैद करने की कोशिश है ये, लेकिन ये कैद किसी पिंजरे जैसी नहीं , एक आसमान सा पिंजरा हो जहाँ मुक्त हो हर भाव, कुछ तेरे कुछ पूरी कायनात के और साथ बैठ कर इन्हें गुनें-बुनें और सुनायें एक-दूजे को सभी सरहदों को पार कर।
मन को पंछी बनाया तभी तो इस मुक्ताकाश में सरहद पार के साथी भी है जो अपने मन की बात कहने जुड़ें हैं हमसे, देश-दुनिया के अलग-अलग कोने से, क्योंकि पंछियों के लिए सरहद कहाँ मायने रखती है। और कहते है ना की पंछियों, नदियों, पवनों के झोकों को कोई सरहद नहीं रोक सकती है।
तभी तो एक विचार को पंख देने की कोशिश की अंशु हर्ष ने और इनका साथ दिया 50 कविमन ने । ये सभी कविमन अपनी जिन्दगी के अनुभव साझा करते नजर आये। इन सभी भावों को आवरण दिया पदम् श्री तिलक गीताई ने। गीताई के सुन्दर चित्र से इस किताब की अहमियत पहले ही पायदान पर बेशकीमती हो गयी। चित्रकारी भी तो भावों की रंगों से व्याख्या है, और तिलक गीताई के भाव हमारे लिए अनमोल है। तिलक गीताई को चित्रकारी की विभिन्न शैलियों जयपुर शैली, मेवाड़ शैली, मारवाड़ शैली, कोटा शैली, बूंदी शैली, किशनगढ़ शैली, कांगड़ा शैली आदि में महारत हासिल है। 26 अक्टूबर, 1949 को पूर्व बीकानेर राज्य के दरबारी कलाकारों के परिवार में जन्मे गीताई ने 1974 में दिल्ली विश्वविधालय से ललित कला में स्नातक की उपाधि प्राप्त की। तिलक गीताई को राष्ट्रीय पुरस्कार, शिल्पगुरु पुरस्कार, राजस्थान शिरोमणि पुरस्कार, कालमणि पुरस्कार, महाराणा सज्जनसिंह अवार्ड, इंदिरा गाँधी प्रियदर्शनी पुरस्कार, राजस्थान गौरव, महाराजा सवाई जगतसिंह अवार्ड सहित अनेकानेक पुरस्कारों से सम्मानित किया जा चुका है।
इस कविता संग्रह में 50 लेखकों की कविताओं को संकलित किया गया है जिनके नाम इस प्रकार है :- किरण किंडो, विजयलक्ष्मी जांगिड़, अनुजा शर्मा, रेनू शर्मा, प्रेरणा पुरोहित,अंशु हर्ष, आशा भाटिया, शशि सक्सेना, अलका चौधरी, नीतू आहूजा, जया चोटिया, अंजू पुरोहित, निर्मला सेवानी, कविता 'मुखर ', नीलम सपना शर्मा, वीना चौहान, ज्ञानवती सक्सेना, नम्रता यूहाना, संध्या बख्शी, दीपा मसंद, रेणु चन्द्रा माथुर, डॉ. रत्ना शर्मा, कुसुम चोखानी, राजेन्द्र सिंह गहलोत, निखिल कपूर, राजेन्द्र प्रसाद बोहरा, राम कमल मुखर्जी, महेंद्र सिंह भेरुडा, अभिषेक मिश्रा, रविंद्र 'वजीर' , प्रवीण झा, तपिश खण्डेलवाल, राजेंद्र चौधरी, हेमंत भाटी, राजीव पुरोहित, मयंक गुप्ता, शैलेन्द्र अग्रवाल, मनीष रंजन पांडेय, संजय रीनापति, मनिका मोहन सक्सेना, अनुराग शर्मा, अजेय रतन, संजय कोठारी, अशोक चौधरी, विनोद सिंधानि, प्रमिला मूंदड़ा, अंजू पुरोहित, ममता सारस्वत, रणजीत सिंह, सोमेंद्र हर्ष।
" मुक्ताकाश " कविमन संग्रह का सम्पादन अंशु हर्ष ने किया है , मिडिया एंटरप्रेन्योर अंशु हर्ष मंथली मैगजीन ' सिम्पली जयपुर ' की स्वामिनी, प्रधान संपादक एवं साप्ताहिक समाचार पत्र ' वॉयस ऑफ़ जयपुर' की स्वामिनी, प्रकाशक है, सिनेमा में रूचि के कारण राजस्थान इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल की फाउंडर भी है और रिफ फिल्म कल्ब की ट्रस्टी भी। इसके साथ ही साथ अपने सामाजिक सरोकारों के कारण महिलाओं को समर्पित एन.जी.ओ. ' ग्लोबल वुमन पावर ' की राजस्थान की डायरेक्टर भी है। अंशु हर्ष को लगता है की फिल्मों की कहानियाँ जीवन का प्रतिबिम्ब है, जीवन को दिशा देने वाली है , इसलिए ऐसी फिल्मों का चयन कर वह रिफ फिल्म कल्ब के सदस्यों को ऐसी फिल्में दिखाती है। लम्हों को महसूस कर उसे शब्द रूप देकर कविताओं और कहानियों के रूप में कागज पर उतार देना उनके जीवन का हिस्सा है। ' शब्दों का समंदर ' अंशु हर्ष का कविता संग्रह है। कविता लिखने की प्रेरणा उन्हें आसपास के वातावरण से मिलती है। कुछ मुलाकातें, कुछ अनुभव, कुछ घटनाएं , कुछ सपने और कुछ तस्वीरें भी नया लिखने के लिए प्रेरित करती है।
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