जयपुर। कृषि भूमि में आद्रता की कमी है और यह स्थिति चना बुवाई के लिए आदर्श नहीं है। इसके चलते किसान चना बुवाई के स्थान पर गेहूं बुवाई को प्राथमिकता दे रहे हैं। वहीं खरीफ दलहनों की कमजोर कीमतों ने भी दलहनों की बुवाई के प्रति किसानों का मोहभंग किया है। चने को छोड़कर ज्यादातर दलहनों की कीमतें न्यूनतम समर्थन मूल्य से नीचे चल रही है। सर्दी के मौसम में आद्रता की कमी के चलते किसान चने की जगह गेहूं की बुवाई को अधिक प्राथमिकता दे रहे हैं। गत वर्ष के मुकाबले रबी फसलों की बुवाई 16 %घट गयी क्योंकि किसान नगदी तरलता की कमी और जमीन में आद्रता की कमी भुगत रहे हैं। 16 नवंबर तक रबी दलहन फसलों की बुवाई का क्षेत्रफल 18%घटकर 69.95 लाख हेक्टेयर दर्ज किया गया है। विशेषज्ञों के अनुसार आगे भी इन आंकड़ों में कमजोरी ही रहेगी।
किसानों का मानना है कि इस वर्ष उन्हें गेहूं की कीमतें दलहनी फसलों से अच्छी मिलेगी और इसलिए वह गेहूं बुवाई को अधिक प्राथमिकता दे रहे हैं। सामान्य तौर पर रबी फसलों की पूर्ण बुवाई दिसंबर माह के अंत तक होती है लेकिन इस बार जमीन में आद्रता की कमी के चलते बुवाई के आंकड़ों में कमी आ रही है। वहीं किसानों को शीत ऋतु में होने वाली वर्षा का इंतजार है। ऐसा अनुमान है कि इस वर्ष दलहनों की कमजोर बुवाई के चलते इनकी आपूर्ति प्रभावित होगी और धीरे-धीरे इनकी कीमतों में वृद्धि होगी।
खरीफ की फसलों में किसानों को अपेक्षाकृत कम कीमतें हासिल हुई इसके चलते किसानों ने अपना माल रोका हुआ है।इससे उनकी खरीद क्षमता प्रभावित हुई है। प्रत्यक्ष रूप से इससे बुवाई प्रभावित हुई है और आशंका है कि आने वाले दिनों में बुवाई क्षेत्र में कमी के चलते उत्पादन भी कमजोर हो सकता है।
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