ऐसा लगता है, जब गाँव गांधी को रचता है - Karobar Today

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Saturday, October 5, 2019

ऐसा लगता है, जब गाँव गांधी को रचता है




 Gandhi as seen through the lens of traditional Indian artists


मुंबई। मोहनदास करमचंद गांधी पहली बार 1888 में विधि की पढ़ाई के लिए लंदन आए थे। लेकिन इस शहर ने उन्हें बहुत कुछ दिया। यही वह शहर था, जिसने उन्हें उदीयमान वकील बनाया, बल्कि एक कर्मठ कार्यकर्ता और लेखक के रूप में भी विकसित किया। यही वह शहर था, जिसने उन्हें एनी बीसेंट और मैडम ब्लावात्स्की जैसे लोगों से मिलवाया और उनकी चेतना को आकार दिया। इसके बाद ही मोहनदास को भारत में महात्मा के रूप जाना गया। यूं वे कई बार लंदन आए। लेकिन उनका सबसे महत्त्वपूर्ण और अंतिम दौरा 1931 का था, जब वे दूसरे गोलमेज सम्मेलन के लिए लंदन आए थे। और तब 10 डाउनिंग स्ट्रीट के सामने धोती और शॉल लपेटे महात्मा गांधी की जो तस्वीर ली गई थी, वह आज पेंटिंग के रूप में उतनी ही जीवंत जान पड़ती है।   
महात्मा गांधी की सादगी और नेतृत्व को दर्शाती इस ऐतिहासिक तस्वीर को ओडिशा के पुरी की  लक्ष्मी स्वैन ने अपने हाथों से बनाई पट्टचित्र पेंटिंग में बेहद खूबसूरती के साथ पुनः जीवंत किया है। यह पट्टचित्र और भारत के अलग-अलग हिस्सों के दस्तकारों की बनाई 24 अन्य पेंटिंग महात्मा गांधी की 150वीं जयंती के उपलक्ष्य में लंदन में आयोजित एक प्रदर्शनी में प्रदर्शित की गई हैं।     

इस पारंपरिक कला प्रदर्शनी का आयोजन भारतीय निर्यात-आयात बैंक (एक्ज़िम बैंक) और नेहरू सेंटर, लंदन तथा लंदन में भारतीय उच्चायोग द्वारा संयुक्त रूप से किया जा रहा है। इस प्रदर्शनी का उद्घाटन महात्मा गांधी की 150वीं जयंती के शुभ अवसर पर 2 अक्टूबर, 2019 को किया गया। प्रदर्शनी का उद्घाटन लंदन में भारत की उच्चायुक्त सुश्री रुचि घनश्याम और प्रख्यात लेखक व नेहरू सेंटर के निदेशक  अमिश त्रिपाठी द्वारा किया गया। यह प्रदर्शनी आम लोगों के लिए नेहरू सेंटर में 11 अक्टूबर, 2019 तक खुली रहेगी। 

कला ‘दर्शन’: फिर से जियें गांधीजी के आदर्श रंगों में देखें जीवन के अंश नाम की इस प्रदर्शनी के जरिए लंदन में रहने वाले लोग महात्मा गांधी के आदर्शों और उनके जीवन की महत्त्वपूर्ण घटनाओं से रू-ब-रू होंगे। प्रदर्शनी में कुछ ऐतिहासिक घटनाओं को जीवंत रूप में देखने और महात्मा गांधी के जीवन से मिलने वाले प्रमुख सबक सीखने का मौका मिलता है। लंदन में आयोजित यह प्रदर्शनी महात्मा गांधी की 150वीं जयंती के उपलक्ष्य में एक्ज़िम बैंक द्वारा आयोजित ऐसी ही श्रृंखलाबद्ध प्रदर्शनियों में सातवीं प्रदर्शनी है। पहली प्रदर्शनी जहां महात्मा गांधी की पुण्य तिथि (30 जनवरी) को नई दिल्ली के नेहरू मेमोरियल म्यूज़ियम एवं लाइब्रेरी में लगाई गई थी, वहीं दूसरी प्रदर्शनी कस्तूरबा गांधी की पुण्य तिथि (22 फरवरी) को पुणे के आगा खां पैलेस में आयोजित की गई थी। तीसरी प्रदर्शनी दांडी मार्च की वर्षगांठ पर अहमदाबाद के साबरमती आश्रम में लगाई गई थी। चौथी और पांचवीं प्रदर्शनियों का आयोजन जुलाई 2019 में कोलकाता के विक्टोरिया मेमोरियल में, और अगस्त 2019 में स्वतंत्रता दिवस पर विश्वभारती विश्वविद्यालय, शांतिनिकेतन में किया गया था। छठी प्रदर्शनी मध्य सितंबर में मुंबई के मणि भवन में लगाई गई थी।     

इन प्रदर्शनियों में दुनिया भर से 25,000 से ज्यादा लोग आए और पारंपरिक कलाकारों की इस कलात्मक अभिव्यक्ति को सराहा। ऑस्ट्रेलिया के सिडनी से पुणे आए हुए कलाप्रेमी श्री मार्टिन कोक्सेल ने आगा खां पैलेस में लगी इस प्रदर्शनी को देखते ही तपाक से कहा, “विलक्षण व्यक्ति को अद्भुत श्रद्धांजलि।” दिल्ली स्थित इतिहासविद्  निर्मल पांडे ने कहा कि “महात्मा गांधी के जीवन और विरासत को 12 भारतीय कलाओं के माध्यम से अभिव्यक्ति प्रदान करने का विचार अपने आप में सराहनीय है।” वहीं, अहमदाबाद के कला समालोचक श्री नरेश गुलाटी ने कहा, “अच्छी चीज यह है कि इन पेंटिंग्स के साथ इनका ब्यौरा भी दिया गया है कि यह भारत के किस हिस्से की कौनसी कला है और किस तरह बनाई जाती है। इनमें से कुछ तो मंत्रमुग्ध कर देने वाली हैं। और इसके लिए एक्ज़िम बैंक की सराहना की जानी चाहिए।”

यह पेंटिंग प्रदर्शनी और भी कई वजहों से अपने आप में अनूठी और खास है। ये वजहें हमारे बीच गांधी को फिर से रचे जाने की प्रक्रिया में ही निहित हैं। महात्मा गांधी की इन पेंटिंग्स को भारत के कोने-कोने में बसे गांवों के कलाकारों ने रचा है। अपनी पारंपरिक शैली में हू-ब-हू वैसे ही, जैसे गांधी सोचा करते थे। एक्ज़िम बैंक के आग्रह पर विशेष रूप से बनाई गई इन 25 पेंटिंग्स के माध्यम से ग्रामीण कलाकारों ने अपने रंगों से सींचकर ऐसा ही एक ‘गांधीग्राम’ रचा है। इस प्रदर्शनी की थीम है- गांधी का जीवन और विरासत। ये पेंटिंग न सिर्फ गांधी की विरासत को जीवंत बनाती हैं, बल्कि देश के अलग-अलग हिस्सों की 12 कलाओं से साक्षात्कार भी कराती हैं।

इस प्रदर्शनी में आपको देखने को मिलेंगीः वारली, गोंड, पूर्वोत्तर की बुनाई, पट्टचित्र, पेपियर मैशे, तंजौर, सांझी, पटुआ, कलमकारी, माता-नी-पाछेड़ी, फड़ और मधुबनी पेंटिंग। वारली पेंटिंग जहां महाराष्ट्र के दहानु के कलाकारों ने बनाई है, तो वहीं गोंड पेंटिंग को मध्य प्रदेश में भोपाल के पास कोटरा सुल्तानाबाद के कलाकारों ने आकार दिया है। पूर्वोत्तर की बुनाई को असम के कामरूप जिले के चित्रकारों ने तैयार किया है, तो पट्टचित्र पेंटिंग ओडिशा के चंदनपुर और पेपियर मैशे जम्मू-कश्मीर के श्रीनगर की कलाकारी है। तंजौर पेंटिंग तमिलनाडु के त्रिप्लीकेन के कलाकारों का हुनर है, तो सांझी कला उत्तर प्रदेश के मथुरा, पटुआ पेंटिंग पश्चिम बंगाल के पश्चिम मिदनापुर और कलमकारी आंध्रप्रदेश के श्रीकालाहस्ती के कलाकारों का। माता-नी-पाछेड़ी गुजरात के अहमदाबाद, फड़ पेंटिंग राजस्थान के भीलवाड़ा और मधुबनी पेंटिंग बिहार के मधुबनी के कलाकारों ने बनाई हैं। 

इस प्रदर्शनी का विचार कैसे आया, यह पूछने पर एक्ज़िम बैंक के मुख्य महाप्रबंधक  नदीम पंजेतन ने बताया, “हमने राष्ट्रपिता महात्मा गांधी को आदरांजलि देने के लिए उन लोगों का नजरिया चाहा, जो महात्मा गांधी के जीवन में सबसे अहम थे- भारत के आम लोग। हमने बहुत से ग्रामीण कलाकारों से संपर्क किया और अंततः 15 से ज्यादा कलाकारों तक पहुंचे। सभी कलाकारों ने दो महीने से ज्यादा समय तक इन पर काम किया। इन चित्रों में देश के उन्हीं आम लोगों की छाप है, जो गांधीजी के वकील से लेकर राष्ट्रपिता बनने तक की इस यात्रा में सबसे महत्त्वपूर्ण रहे।”

यह पूछने पर कि पेंटिंग, और खास तौर पर इस आधुनिक युग में पारंपरिक पेंटिंग कहीं पीछे छूट रही है, उन्होंने कहा, “ऐसा नहीं है। आज देश की पारंपरिक कलाओं की अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बड़ी मांग है। हमें इन्हें सही तरीके से उन बाजारों तक पहुंचाने की जरूरत है। हमने इस पेंटिंग प्रदर्शनी के जरिए इन कलाओं को एक बड़े फलक पर लाने की कोशिश की है।”

ये प्रदर्शनियां पूरी तरह गैर-वाणिज्यिक हैं और प्रदर्शित की गई प्रत्येक पेंटिंग का एकमात्र मकसद भारत की विभिन्न कलाओं के माध्यम से गांधी जी के जीवन और विरासत से लोगों को रू-ब-रू कराना है।

एक्ज़िम बैंक भारतीय अर्थव्यवस्था के चहुंमुखी विकास में भरोसा रखता है और अपने ग्रासरूट उद्यम विकास तथा मार्केटिंग सलाहकारी सेवाओं जैसे कार्यक्रमों के जरिए देश के सुदूर ग्रामीण इलाकों के उद्यमों और कलाकारों को भी घरेलू और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ऑर्डर हासिल करने में सहयोग प्रदान करता रहा है।

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