सुविज्ञ भविष्य के लिए पैसिव से एक्टिव शिक्षा की ओर कदम बढ़ाइए!
डॉ जमशेद भरुचा, कुलपति, एसआरएम अमरावती
हमारे राष्ट्र का भविष्य यहाँ के बच्चों और उनको दी जा रही शिक्षा पर निर्भर है। इसीलिए बच्चों के और परिणामवश राष्ट्र के भविष्य की रचना में शिक्षकों का योगदान अहम् है। पूरी दुनिया में सिखाने के काम को सबसे महत्त्वपूर्ण कामों में से एक माना गया है। सही मायनों में शिक्षक ही बच्चों के मन और बुद्धि को ज्ञान और अच्छे मूल्यों से परिपक्व कर सकते हैं। आज के दौर में जब मशीन लर्निंग और आर्टिफिशियल इंटेलिजेन्स मानवीय इंटरफ़ेस की जगह ले रहे हैं, तब शिक्षकों के लिए यह और भी जरुरी हो गया है कि वे गत बातों को अपने दिमाग से निकाल कर भविष्य में काम आनेवाली नई टेक्निक्स के साथ अपना मेल बिठाए।
आज भी शिक्षा प्रणाली और शिक्षा व्यवस्था में कई सारे परिवर्तन किए जाने बाकी हैं। भारतीय शिक्षा व्यवस्था एक परिवर्तन प्रक्रिया से गुजर रही है। यहाँ शिक्षा के जरिए देश के मानव संसाधन के विकास के लिए "पश्चिमी देशों की सर्वोत्तम प्रक्रियाओं" को अपनाया जा रहा है। ज्यादातर तर छात्र सिर्फ बैठते हैं और जानकारी लेते रहते हैं। परीक्षाओं की तैयारी के अलावा सिखाने या सीखने की प्रक्रिया में छात्रों का सहभाग बहुत ही कम दिखाई देता है। भारत में सिखाने के वर्तमान तरीकें अभी भी मानवी मस्तिष्क के सीखने के तरीके के अनुकूल नहीं हैं। लेक्चर के दौरान छात्रों का मन विचलित बहुत ही आसान है। 40 से 50 मिनटों के लेक्चर में काफी सारे छात्र पूरे समय पूरा ध्यान नहीं दे पाते। कई छात्र तो 5 मिनटों तक भी ध्यान नहीं दे पाते। लेकिन अगर लेक्चर के बजाय बातचीत, सवाल-जवाब, संवाद चल रहा हो तो छात्रों का ध्यान तुरंत कक्षा में कक्षा में लौट आता है और उनका दिमाग तेजी से चलने लगता है। फ्लिप्ड क्लासरूम के पीछे का प्रमुख विचार यही है।
एक ही दिशा में, एक ही सूर पकड़े हुए, सिर्फ एक ही व्यक्ति जानकारी दिए जा रहा हो ऐसी पैसिव कक्षाएं किसी के लिए भी उपयुक्त नहीं हो सकती। इस पद्धति को पुराने समय में शुरू किया गया था जब शिक्षक बोलेंगे और छात्र सुनेंगे इसके अलावा और कोई भी विकल्प उपलब्ध ही नहीं था। लेकिन आज सभी छात्रों को सभी जानकारी आसानी से उपलब्ध हो सकती है। फ्लिप्ड क्लासरूम मॉडल में छात्रों को पूरी कक्षा के में निर्देशित पठन करना होता है, छात्रों को यह पता होता है कि उन्होंने जो कुछ भी सीखा है या पढ़ा है उसका या तो पूरी कक्षा के सामने या कुछ छात्रों के समूह के सामने विश्लेषण करने के लिए कहा जा सकता है। आज शिक्षक का काम ज्ञान देना नहीं है बल्कि छात्रों के साथ बातचीत, विचारविमर्श करना है। चर्चा, अभिव्यक्ति, समीक्षा, ज्ञान का उपयोग और नई बातें, नए विचारों की खोज इन सभी प्रक्रियाओं में छात्रों का मार्गदर्शक बनना शिक्षक का काम है।
कॉग्निटिव न्यूरोसाइंस में किए गए एक अनुसन्धान के नतीजों के अनुसार सक्रीय तरीकों से सिखाई गई बातें अच्छे से समझ में आती हैं और दिमाग में हमेशा के लिए बैठ जाती हैं, नई समस्याओं को सुलझाने के लिए और नए अवसरों से लाभ पाने के लिए ऐसे ज्ञान का आसानी से उपयोग किया जा सकता है। आखिर भविष्य का मतलब भी तो पहले से न सोची हुई समस्याएं और अवसर यही होता है। सक्रीय शिक्षा से आप वर्तमान ज्ञान पर इस तरह से प्रभुत्व प्राप्त कर लेते हैं जो आपको ऐसे भविष्य में होनेवाले निरंतर परिवर्तन के लिए तैयार करता है। सक्रीय शिक्षा के दौरान छात्र का मस्तिष्क और मन पूरी तरह से पढाई में ही जुड़ा रहता है, विचारों, कल्पनाओं की लेन-देन में छात्रों का पूरा ध्यान पढ़ाई में लगा रहता है।
देश की तेजी से विकसित होती हुई वित्त व्यवस्था में एक ओर कई नौकरियां खाली पड़ी हुई हैं तो दूसरी ओर बेरोजगार कॉलेज ग्रॅज्युएट्स की संख्या बढ़ती जा रही है। भारतीय उच्च शिक्षा की समस्या का यह सबसे बड़ा लक्षण है। नए विचारों, कल्पनाओं और जड़ से लाए जानेवाले सुधारों के लिए अभी का दौर सबसे अच्छा और अनुकूल है। छात्रों की स्वाभाविक क्षमताओं को हौसला देने के उद्देश्य से अगर शिक्षा व्यवस्था की रचना की जाए तो आगे चलकर भारत की युवा आबादी देश को अभूतपूर्व उंचाईओं को लेकर जा सकती है। लेकिन अगर आज हमने कदम नहीं उठाए तो यही भारी आबादी देश के लिए बोझ बनकर रह जाएगी। इस ऐतिहासिक अवसर को हाथ से जाने न दे।
डॉ जमशेद भरुचा, कुलपति, एसआरएम अमरावती
हमारे राष्ट्र का भविष्य यहाँ के बच्चों और उनको दी जा रही शिक्षा पर निर्भर है। इसीलिए बच्चों के और परिणामवश राष्ट्र के भविष्य की रचना में शिक्षकों का योगदान अहम् है। पूरी दुनिया में सिखाने के काम को सबसे महत्त्वपूर्ण कामों में से एक माना गया है। सही मायनों में शिक्षक ही बच्चों के मन और बुद्धि को ज्ञान और अच्छे मूल्यों से परिपक्व कर सकते हैं। आज के दौर में जब मशीन लर्निंग और आर्टिफिशियल इंटेलिजेन्स मानवीय इंटरफ़ेस की जगह ले रहे हैं, तब शिक्षकों के लिए यह और भी जरुरी हो गया है कि वे गत बातों को अपने दिमाग से निकाल कर भविष्य में काम आनेवाली नई टेक्निक्स के साथ अपना मेल बिठाए।
आज भी शिक्षा प्रणाली और शिक्षा व्यवस्था में कई सारे परिवर्तन किए जाने बाकी हैं। भारतीय शिक्षा व्यवस्था एक परिवर्तन प्रक्रिया से गुजर रही है। यहाँ शिक्षा के जरिए देश के मानव संसाधन के विकास के लिए "पश्चिमी देशों की सर्वोत्तम प्रक्रियाओं" को अपनाया जा रहा है। ज्यादातर तर छात्र सिर्फ बैठते हैं और जानकारी लेते रहते हैं। परीक्षाओं की तैयारी के अलावा सिखाने या सीखने की प्रक्रिया में छात्रों का सहभाग बहुत ही कम दिखाई देता है। भारत में सिखाने के वर्तमान तरीकें अभी भी मानवी मस्तिष्क के सीखने के तरीके के अनुकूल नहीं हैं। लेक्चर के दौरान छात्रों का मन विचलित बहुत ही आसान है। 40 से 50 मिनटों के लेक्चर में काफी सारे छात्र पूरे समय पूरा ध्यान नहीं दे पाते। कई छात्र तो 5 मिनटों तक भी ध्यान नहीं दे पाते। लेकिन अगर लेक्चर के बजाय बातचीत, सवाल-जवाब, संवाद चल रहा हो तो छात्रों का ध्यान तुरंत कक्षा में कक्षा में लौट आता है और उनका दिमाग तेजी से चलने लगता है। फ्लिप्ड क्लासरूम के पीछे का प्रमुख विचार यही है।
एक ही दिशा में, एक ही सूर पकड़े हुए, सिर्फ एक ही व्यक्ति जानकारी दिए जा रहा हो ऐसी पैसिव कक्षाएं किसी के लिए भी उपयुक्त नहीं हो सकती। इस पद्धति को पुराने समय में शुरू किया गया था जब शिक्षक बोलेंगे और छात्र सुनेंगे इसके अलावा और कोई भी विकल्प उपलब्ध ही नहीं था। लेकिन आज सभी छात्रों को सभी जानकारी आसानी से उपलब्ध हो सकती है। फ्लिप्ड क्लासरूम मॉडल में छात्रों को पूरी कक्षा के में निर्देशित पठन करना होता है, छात्रों को यह पता होता है कि उन्होंने जो कुछ भी सीखा है या पढ़ा है उसका या तो पूरी कक्षा के सामने या कुछ छात्रों के समूह के सामने विश्लेषण करने के लिए कहा जा सकता है। आज शिक्षक का काम ज्ञान देना नहीं है बल्कि छात्रों के साथ बातचीत, विचारविमर्श करना है। चर्चा, अभिव्यक्ति, समीक्षा, ज्ञान का उपयोग और नई बातें, नए विचारों की खोज इन सभी प्रक्रियाओं में छात्रों का मार्गदर्शक बनना शिक्षक का काम है।
कॉग्निटिव न्यूरोसाइंस में किए गए एक अनुसन्धान के नतीजों के अनुसार सक्रीय तरीकों से सिखाई गई बातें अच्छे से समझ में आती हैं और दिमाग में हमेशा के लिए बैठ जाती हैं, नई समस्याओं को सुलझाने के लिए और नए अवसरों से लाभ पाने के लिए ऐसे ज्ञान का आसानी से उपयोग किया जा सकता है। आखिर भविष्य का मतलब भी तो पहले से न सोची हुई समस्याएं और अवसर यही होता है। सक्रीय शिक्षा से आप वर्तमान ज्ञान पर इस तरह से प्रभुत्व प्राप्त कर लेते हैं जो आपको ऐसे भविष्य में होनेवाले निरंतर परिवर्तन के लिए तैयार करता है। सक्रीय शिक्षा के दौरान छात्र का मस्तिष्क और मन पूरी तरह से पढाई में ही जुड़ा रहता है, विचारों, कल्पनाओं की लेन-देन में छात्रों का पूरा ध्यान पढ़ाई में लगा रहता है।
देश की तेजी से विकसित होती हुई वित्त व्यवस्था में एक ओर कई नौकरियां खाली पड़ी हुई हैं तो दूसरी ओर बेरोजगार कॉलेज ग्रॅज्युएट्स की संख्या बढ़ती जा रही है। भारतीय उच्च शिक्षा की समस्या का यह सबसे बड़ा लक्षण है। नए विचारों, कल्पनाओं और जड़ से लाए जानेवाले सुधारों के लिए अभी का दौर सबसे अच्छा और अनुकूल है। छात्रों की स्वाभाविक क्षमताओं को हौसला देने के उद्देश्य से अगर शिक्षा व्यवस्था की रचना की जाए तो आगे चलकर भारत की युवा आबादी देश को अभूतपूर्व उंचाईओं को लेकर जा सकती है। लेकिन अगर आज हमने कदम नहीं उठाए तो यही भारी आबादी देश के लिए बोझ बनकर रह जाएगी। इस ऐतिहासिक अवसर को हाथ से जाने न दे।
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