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Saturday, January 4, 2020

अवैध रिपीटर्स कर रहे हैं नेटवर्क कवरेज को बाधित, दूरसंचार उद्योग ने किया तुरंत कार्रवाई का आह्वान





जयपुर। बूस्टर्स या रिपीटर्स पिछले कुछ सालों में तेज़ी से लोकप्रिय हुए हैं। ये उपकरण कम कनेक्टिविटी वाले क्षेत्रों में उपलब्ध मोबाइल टॉवर सिगनल पर काम करते हैं, जिसे विस्तारित कर छोटे, घने क्षेत्रों जैसे इमारतों या इमारतों के समूह में वितरित किया जाता है। हाल ही में बूस्टर्स का इस्तेमाल ऑपरेटर्स द्वारा ऐसे क्षेत्रों में किया जा रहा है, जहां मोबाइल टॉवर आसानी से इन्सटॉल नहीं किए जा सकते।
मौजूदा नियमों के अनुसार दूरसंचार सेवा प्रदाता गहन जांच के बाद इस तरह के रिपीटर्स इन्सटॉल करते हैं, आवश्यकतनुसार अनुरोध किए जाने पर ही इन्हें इन्सटॉल किया जाता है। दूरसंचार सेवा प्रदाता सुनिश्चित करते हैं कि रिपीटर इन्सटॉल करने से वितरण क्षेत्र के बाहर मौजूद लोगों के लिए नेटवर्क कवरेज बाधित न हो। इस तरह की डिवाइस सिगनल के लिए उपलब्ध इनपुट-आउटपुट प्रणाली को प्रबंधित करती हैं और आस-पास के निर्धारित क्षेत्र में उपयुक्त नेटवर्क कनेक्टिविटी उपलब्ध कराती है, जिससे कम नेटवर्क का ज़ोन भी कवर हो जाता है। 
हालांकि ग्रे मार्केट (चोरी केे सामान के बाज़ार) और ऑनलाईन ईकॉमर्स स्टोर कम लागत के अवैध रिपीटर्स उपलब्ध करा रहे हैं, जिसे कोई भी खरीद कर अवैध तरीके से इन्सटॉल कर सकता है। मुद्दे की बात यह है कि ये डिवाइसेज़ कम नेटवर्क वाले क्षेत्र या इमारतों में नेटवर्क सिगनल उपलब्ध कराती है, इससे अन्य क्षेत्रों में नेटवर्क की क्षमता कम हो जाती है, क्योंकि किसी विशेष क्षेत्र का नेटवर्क कवरेज वितरित कर दिया जाता है। जिसके चलते कॉल ड्रॉप और कनेक्टिविटी में गिरावट के मामले बढ़े हैं।
इस प्रकार शहरों में इस तरह के अवैध रिपीटर्स घरों, कार्यालयों, गेस्ट हाउस आदि में इन्सटॉल किए जा रहे हैं, जिससे सभी उपभोक्ताओं के लिए मोबाइल नेटवर्क की गुणवत्ता में गिरावट आ रही है। यहां तक की घरों के मालिक अवैध तरीके से इस तरह के डिवाइसेज़ लगाकर किराएदारों को लुभा रहे हैं, जिससे सम्पूर्ण क्षेत्र में कनेक्टिविटी पर बुरा असर पड़ा है, फिर चाहे वह 2जी नेटवर्क हो, 3जी या 4 जी।
दूरसंचार उद्योग भी इस मुद्दे के खिलाफ़ आवाज़ उठा रहा है क्योंकि ये अवैध रिपीटर्स आज दूरसंचार उद्योग के लिए बड़ी चुनौती बन गए हैं, और उपभोक्ताओं के समक्ष आने वाली नेटवर्क संबंधी समस्याओं जैसे कॉल ड्रॉप, कम डेटा स्पीड आदि का मुख्य कारण हैं। खासतौर पर घनी आबादी वाले क्षेत्रों में इस तरह की समस्याएं आम हो गई हैं। इलेक्ट्रोनिक बाज़ारों में आसानी से उपलब्ध ये रिपीटर अनधिकृत एजेन्सियों द्वारा घरों, कार्यालयों और गेस्ट हाउसेज़ में इन्सटॉल किए जा रहे हैं, ताकि इन क्षेत्रों में नेटवर्क कनेक्टिविटी को बढ़ाया जा सके।
मोबाइल ऑपरेटर जो नेटवर्क विस्तार में भारी निवेश कर रहे हैं, वे भी इन रिपीटर्स को पहचान कर इन्हें बंद करने की चुनौती से जूझ रहे हैं। कुल मिलाकर, उद्योग जगत ने इसके खिलाफ़ सख्त कदम उठाने के लिए दूरसंचार विभाग से संपर्क किया है, साथ ही दिल्ली-एनसीआर में अवैध रिपीटर्स इन्सटॉल करने वालों के खिलाफ़ एफआईआर दर्ज की गई है। अकेले शहर में 30 फीसदी से अधिक सैल (8000 सैल्स) साईट्स हैं, जिन्हें अवैध रिपीटर्स के कारण बहुत अधिक बाधित किया जा रहा है। जिसके चलते कॉल ड्रॉप और ब्लॉक्ड कॉल्स के मामले तकरीबन 7 से 10 गुना बढ़ गए हैं।
विकसित देशों में यह समस्या और भी आम है। पिछले साल वेस्टर्न कवीन्सलैण्ड, ऑस्ट्रेेलिया में चारलेविले ओर कैमूवील में बड़ी संख्या में कॉल ड्रॉप और कवरेज में गिरावट के मामले दर्ज किए गए।
इसके अलावा, ये रिपीटर्स कनेक्टिविटी अपलिंक पथ को प्रभावित करते हैं, जिससे नेटवर्क अनुभव जैसे एक्सेसेबिलिटी, रीटेन्शन और यूज़र थ्रूपुट में गिरावट आती है। इस तरह के उपकरण आमतौर पर सभी स्पैक्ट्रम बैण्ड्स को सपोर्ट करते हैं और नियमित रूप से चलते रहते हैं, जिससे सेवा प्रदाता की सैल साईट बाधित होती है। अपलिंक में बाधा बढ़ने से, मोबाइल हैण्डसेट साईट के साथ कनेक्टिविटी के प्रबंधन के लिए ज्यादा पावर संचरित करता है। इससे बैटरी की खपत बढ़ती है और नेटवर्क का अनुभव बाधित होता है। 
दिल्ली एवं कई और शहरों में, ऐसे रिपीटर्स पीजी और हॉस्टल परिसर में पाए जाते हैं, जहां छात्रों को यह कह कर लुभाया जाता है कि उनके क्षेत्र में ‘‘नेटवर्क बूस्टर’’ उपलब्ध हैं। कई मामलों में यह समस्या इतनी गंभीर है कि इसकी वजह से लाइसेंसी ऑपरेटर की निर्बाध दूरसंचार सेवाएं बाधित होती हैं। पहले से कर्ज़ के बोझतला दबा उद्योग अब इस समस्या से जूझ रहा है। स्पैक्ट्रम की लागत उच्च है और दूरसंचार कंपनियां अपना हज़ारों करोड़ का निवेश खो रहीं हैं। कंपनियों ने संबंधित सरकारी अधिकारियों की ओर से तुरंत हस्तक्षेप के लिए अनुरोध किया है। उद्योग जगत ऐसे व्यक्तियों और संगठनों को जवाबदेह बनाने के लिए आह्वान कर रहा है जो इन रिपीटर्स को बेच रहे हैं, इन्हें अवैध रूप से इन्सटॉल कर रहे हैं, ताकि उपभोक्ताओं को कॉल ड्रॉप और बाधित कनेक्टिविटी जैसी समस्याओं से सुरक्षित रखा जा सके। दोषियों के खिलाफ़ एफआईआर दर्ज कर और इस तरह के मामलों में दोषी व्यक्तियों और संगठनों पर भारी जुर्माना लगाकर इस समस्या को दूर करने में मदद मिल सकती है।
दूरसंचार सेवा प्रदताओं ने देश के विभिन्न स्थानों पर लगे ऐसे 200 अवैध रिपीटर्स को हटाने के लिए दूरसंचार विभाग के समक्ष आवेदन प्रस्तुत किया है। कुछ मामलों में यहां तक कि दूरसंचार विभाग द्वारा रिपीटर्स लगाने वालों के खिलाफ़ कानूनी नोटिस भी जारी किया गया है। इस तरह के रिपीटर्स को दंड योग्य अपराध माना जाना चाहिए और इसके लिए जेल या जुर्माना या दोनों की सज़ा का प्रावधान होना चाहिए।
इसके अलावा ऐसे रिपीटर्स की बिक्री को तत्काल प्रभाव के साथ प्रतिबंधित किया जाना चाहिए, ज्म्त्ड और ॅडव् विंग्स को निर्देश दिए जाने चाहिए कि इन रिपीटर्स के खिलाफ़ छापेमारी की जाए। साथ ही, ज्म्त्ड और ॅडव् को ऐसे अवैध रिपीटर्स, बूस्टर, जैमर्स, दोषपूर्ण या लीकी केबल टीवी उपकरणों को ज़ब्त करने का अधिकार दिया जाना चाहिए, जो नेटवर्क को बाधित कर रहे हों। साथ ही पहचाने गए मामलों में दूरसंचार सेवाओं की सुगम डिलीवरी को सुनिश्चित करने के लिए तुरंत कार्रवाई की जानी चाहिए।
ज़्यादातर निर्माता सस्ते और रीसायकल किए गए अवयवों का इस्तेमाल करते हैं, जो ज़्यादा लम्बे समय तक नहीं चल पाते। इसके अलावा रीफंड, वारंटी और कस्टमर सर्विस का प्रावधान नहीं होने के कारण उपयोगकर्ता के पास उपकरण लौटाने का कोई विकल्प नहीं होता। साथ ही, परफोर्मेन्स अच्छी नहीं होती, उपकरण बहुत अधिक शोर करता है और उपभोक्ता के समक्ष कानूनी जोखिम की पूरी संभावना होती है। ऐसे में यह याद रखना ज़रूरी है कि ये रिपीटर्स न केवल अवैध हैं बल्कि नेटवर्क कवरेज की समस्या को हल करने के लिए प्रभावी समाधान भी नहीं हैं। चूंकि बाज़ार बड़े पैमाने पर अनियमित है, ऐसे में दोषपूर्ण कार्यप्रणाली के माले तेज़ी से बढ़ रहे हैं, जो आस-पास के क्षेत्र में रहने वाले लोगों के लिए जोखिम का कारण बन रहे हैं। 

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