आवाज़ एक बच्चे के संज्ञानात्मक एवं संवेदी विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। विभिन्न प्रकार की आवाज़ को पहचानने तथा सही व्यक्ति के साथ जोड़ने की क्षमता से बच्चे में यादादाश्त का विकास होता है, वह सुनना सीखता है। आवाज़ बच्चे के सीखने की क्षमता को प्रभावित करती है। आवाज़ और सुनना दोनों पहलू एक बच्चे के बोलने और संचार क्षमता के लिए ज़रूरी हैं।
लेकिन लम्बे समय तक उंची आवाज़ के संपर्क में रहने से बच्चों पर बुरा असर पड़ सकता है। भीड़-भाड़ भरे शहरी इलाकों में इस बात की संभावना और अधिक बढ़ जाती है कि बच्चे लम्बे समय तक शोर प्रदूषण के संपर्क में रहें। ऐसे कई कारक हैं, जो हमारे आस-पास शोर में योगदान देते हैं।
जीवनशैली के विकल्प महत्वपूर्ण कारक हैं, हालांकि आम अनुभव बताते हैं कि माता-पिता अपने बच्चों को ज़्यादा डेसिबल वाले क्षेत्रों जैसे मुवी हॉल या रेस्टो-बार में लेकर नहीं जाते हैं। कई बार वे पारिवारिक समारोह या किसी अन्य जश्न या कार्यक्रम के दौरान उंचे शोर के संपर्क में रहते हैं।
शोर प्रदूषण घरों, स्कूलों, अस्पतालों या केयर सेंटरों से उत्पन्न हो सकता है। भारत के शहरों में ज़्यादातर घर व्यस्त सड़कों या कभी कभी राजमार्गों से जुड़े होते हैं, ऐसे में यातायाता के शोर का असर घर पर पड़ता है। इसके अलावा ओद्यौगिक गतिविधियां, सड़क निर्माण, रेनोवेशन और आस-पास के बाज़ारों का शोर भी हमारे घरों को प्रभावित करता है।
यह प्रभाव कितना गंभीर है?
60-70 डेसिबल से अधिक का कोई भी शोर बच्चों पर बुरा असर डालता है। 15 मीटर की दूरी के अंदर यातायात या रेल, व्यस्त सड़कें, संगीत, पटाखे, खिलौनों की आवाज़ सभी का शोर 70 डेसिबल से अधिक होता है, जो चिड़चिड़ेपन से लेकर कान का पर्दा फटने तक का कारण बन सकता है।
शोर प्रदूषण का बुरा असर न केवल छोटे बच्चों पर बल्कि गर्भ में पल रहे बच्चों पर भी पड़ता है। समय से पूर्व जन्मे या जन्म के समय कम वज़न वाले बच्चे अधिक जोखिम पर होते हैं। शोर के संपर्क में रहने का असर बच्चे के बोलने और सुनने की क्षमता पर भी पड़ता है। पाया गया है कि शोर प्रदूषण में रहने वाले बच्चों में तनाव, याददाश्त में कमी, ध्यान की कमी और पाठन क्षमता पर असर जैसे लक्षण दिखाई देते हैं। शोर के कारण बच्चों के सुनने की क्षमता पर बुरा असर पड़ सकता है। इसके कारण ब्लड प्रेशर बढ़ने से कार्डियोवैस्कुलर सिस्टम पर भी असर पड़ सकता है और बच्चे कई क्रोनिक बीमारियों तक का शिकार हो सकते हैं। साथ ही तेज़ शोर बच्चे की नींद को प्रभावित करता है, जिसका बुरा असर संज्ञानात्मक एवं भावनात्मक विकास पर पड़ता है।
उंचे डेसिबल वाले शोर के प्रभाव को कैसे कम किया जा सकता है?
कई तरीकों से बच्चों को उंचे डेसिबल वाले शोर से सुरक्षित रखा जा सकता है। यह महत्वपूर्ण है कि माता-पिता बच्चों के विकास और उनकी ज़रूरतों के लिए ज़्यादा संवेदनशील बनें, अपने बच्चे को ऐसी जगहों पर न लेकर जाएं जहां उंचे डेसिबल वाला शोर हो जैसे मुवी हॉल आदि। इसके अलावा बच्चों को शोर से सुरक्षित रखने के लिए ईयर मफ का उपयोग किया जा सकात है। हालांकि बाहार के शोर को नियन्त्रित रखना कई बार हमारे बस में नहीं होता, इसके लिए निम्नलिखित उपाय अपनाए जा सकते हैैैंः
शोर के लिए इंसुलेशनः घरों में दरवाज़े और खिड़कियां ऐसे हों जिनसे बाहरी शोर घर के भीतर न आ सके। नॉइस इंसुलेटिंग दरवाज़े और खिड़कियां इसके लिए सबसे अच्छा तरीका है। कई ब्राण्ड ऐसे पेशेवर समाधान पेश करते हैं। दरवाज़ों और खिड़कियों में मौजूद गैप को सिलिकॉन सीलेंट से दूर किया जा सकता है। खिड़कियों में मल्टी-चैम्बर्स फ्यूज़न वेल्डेड जॉइन्ट्स से शोर की संभावना कम हो जाती है। फेनेस्टा की खिड़कियां लैमिनेटेड एवं डबल लैमिनेटेड कांच के विकल्पों के साथ आती हैं, जिससे घर के भीतर शोर की संभावना को कम किया जा सकता है।
वैकल्पिक उपायः आप घर के अंदर फर्नीचर की व्यवस्था इस तरह से कर सकते हैं कि बाहरी शोर घर के भीतर न आ पाएं। आप दरवाज़ों और खिड़कियों पर भारी पर्दे लगा सकते हैं। दरवाज़ों, खिड़कियों के गैप को बंद कर दें। इस गैप को भरने के लिए पुराने कपड़े या अखबार आदि का इस्तेमाल भी किया जा सकता है।
अगर बच्चे में कुछ लक्षण दिखाई दें जैसे वह किसी बात को दोहराने के लिए कहे, रिंगिंग की आवाज़न सुनाई देने की शिकायत करे, अचानक तेज़ बोलने लगे या किसी आवाज़ के लिए प्रतिक्रिया न दे तो तुरंत आटोलैरिंजोलिस्ट से संपर्क करें।
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