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Tuesday, May 12, 2020

सरकार ने पीटा मंडियों में हड़ताल का प्रभाव नहीं होने का ढिंढोरा, मंडी कारोबारियों को प्रदर्शित करनी होगी एकता



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जयपुर। सरकार ने मंडियों में चल रही हड़ताल का कोई प्रभाव नहीं पड़ने की घोषणा की है और कई मंडियों में किसानों से खरीद के साथ कृषि समितियों और सरकारी वेयरहाउस व उसके साथ प्राइवेट वेयरहाउस को गौण मंडी का दर्जा देने की बात कहकर यह दर्शाया है कि उन्हें मंडी कारोबारियों की हड़ताल से कुछ भी नुकसान नहीं होगा और वह मंडियों में आने वाली उपज पर लगने वाली 2% किसान कल्याण फीस को वसूल कर रहेंगे।

    इस प्रकार बताया गया हड़ताल का प्रभाव नहीं होना-
कृषि विभाग के प्रमुख शासन सचिव नरेशपाल गंगवार ने बताया कि बयाना, जैसलमेर, बालोतरा, इटावा, कपासन, रतनगढ़, झुन्झुनू, गुढ़ागौड़जी, मोहनगढ़, राववाला, राजलदेसर, बीदासर, सांडवा, स्वरूपगंज, पिण्डवाड़ा, रेवदर, आबूपर्वत, अनादरा, राशमी, आंवला और भोपाल सागर आदि मण्डियों में कृषि जिन्सों का नियमित व्यवसाय हुआ। हनुमानगढ़ व गंगानगर जिले की अनूपगढ़, गजसिंहपुर, घड़साना, जैतसर, केसरीसिंहपुर, पदमपुर, रायसिंहनगर, रावला, रिडमलसर, श्रीकरणपुर, भादरा, गोलूवाला, श्री विजयनगर, हनुमानगढ़, नोहर, पीलीबंगा, रावतसर, सादुलशहर, संगरिया, सूरतगढ़ व कोटा मण्डी में आढ़तियों के माध्यम से समर्थन मूल्य पर गेहूं की खरीद की गई। राज्य की 8 मुख्य एवं 33 गौण मण्डियों में फल एंव सब्जी का नियमित व्यवसाय हुआ है।
 उन्होंने बताया कि राज्य में 592 ग्राम सेवा एवं क्रय-विक्रय सहकारी समितियों को गौण मण्डी का दर्जा दिया गया है। इनमें से 348 समितियों द्वारा  कृषि जिन्सों का व्यवसाय प्रारम्भ कर दिया गया है। राजस्थान राज्य भण्डार व्यवस्था निगम के 93 वेयरहाउस को भी गौण मण्डी का दर्जा दिया गया है। इसके अतिरिक्त 157 निजी वेयर हाउस को गौण मण्डी का दर्जा दिये जाने की कार्यवाही की जा रही है। इसके अतिरिक्त 1817 अनुज्ञाधारियों को किसानों से उनकी कृषि उपज की सीधी खरीद के अनुज्ञापत्र जारी किए गए है।
   दूसरे राज्यों में बिक रही है उपज- प्रदेश के जीरा और ईसब की बिक्री गुजरात ऊंझा मंडी में हो रही है। वहीं यहां से धनिया, सौंफ की बिक्री भी अन्य राज्यों से होने की खबरें हैं। गौरतलब है कि इससे जहां सरकार को मिलने वाले राजस्व घटेगा वहीं प्रदेश का मंडी कारोबार भी अन्य राज्यों में स्थानांतरित हो जाएगा। इसी कारण मंडी कारोबारी किसान कल्याण फीस का विरोध कर रहे हैं। जबकि बड़ी फीस या तो ग्राहक से वसूल की जाती है या फिर किसानों को देय राशि में सेे काटी जाती है। लेकिन मंडी कारोबार में 2% का अंतर बहुत बड़ा होता है और इतने अंतर में पड़ोसी राज्यों में यहां से जींस जाकर बिकेगी जिससे सरकार को बहुत बड़े राजस्व से हाथ धोना पड़ेगा। हालांकि सरकार के अड़ियल रवैया से लगता है कि उन्हें मंडी कारोबारियों की कोई चिंता नहीं है।
लेकिन यहां पर खाद्य पदार्थ व्यापारियों को एकता दिखानी पड़ेगी नहीं तो सरकार के कान पर जूं नहीं रेंगने वाली।


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