· पिछ्ले 10 वर्षोँ में हॉस्पिटल ने ऐसे 2500 नवजातों
की जान बचाने में सहायता की है जिनका जन्म गर्भ में 37 हफ्ते पूरे होने से पहले हो गया था।
· समय से पहले जन्मे बच्चोँ की 7 प्रमुख जरूरतेँ होती हैं, जैसे कि हीलिंग वातावरण, परिवार का सहयोग, बच्चे की उपयुक्त देखभाल, बच्चे की सुरक्षित नींद, उसके दर्द और तनाव को कम से कम करना, बच्चे की त्वचा की सुरक्षा और उपयुक्त पोषण सुनिश्चित करना।
जयपुर : राज्य में नवजात शिशुओँ की अधिक मृत्यु दर (आईएमआर) के लिए जिम्मेदार कारणोँ में से एक,समयपूर्व जन्म से होने वाली समस्याओँ को सफलतापूर्वक दूर किया जा सकता है, अगर इसके लिए अस्पतालोँ में बेहतरीन नियोनेटल इंटेंसिव केयर यूनिट (एनआईसीयू) की व्यवस्था कर ली जाए तो। पिछ्ले 10 वर्षोँ के दौरान हॉस्पिटल ने ऐसे 2500 नवजातोँ के जीवन के आगे आने वाली अडचनोँ को बडी सफलता से दूर किया है जिनका जन्म माँ की कोख में 37 सप्ताह पूरे करने से पहले हो गया था।
सैम्पल रजिस्ट्रेशन सर्वे (एसआरएस) 2016 क अनुसार,राजस्थान में जन्म लेने वाले प्रति 1000 जीवित शिशुओँ में से 41 की मौत दर्ज की गई, जिसके लिए बर्थ एस्फिक्सिया, जन्म के समय कम वजन (एलबीडब्ल्यु),संक्रमण, डायरिया, टायफॉइडऔर हाइपोथर्मिया जिम्मेदार है और इनमेँ से अधिकतर समस्याओँ का सम्बंध समय से पूर्व बच्चे के जन्म से जुडी हुई हैं।
फोर्टिस ला फेम, जयपुर के एचओडी एवम सीनियर कंसल्टेंट-नियोनेटोलॉजी डॉ. सत्येन के. हेमराजानी कहते हैं, “अधिकतर जगहोँ पर नियोनेटल इंटेंसिव केयर यूनिट में ऐसी उपयुक्त सुविधाएँ नहीं होती हैं, जो समयपूर्व जन्मे बच्चोँ की जरूरतोँ को सही ढंग से पूरा कर सकेँ। समय से पहले जन्मे बच्चोँ की कई तरह की जरूरतेँ होती हैं और इन सभी जरूरतोँ को एक साथ मैनेज करना आवश्यक होता है। ऐसे में अस्पतालोँ में आधुनिकतम सुविधाओँ से लैश एनआईसीयू की जरूरत होती है बल्कि ऐसे प्रशिक्षित स्टाफ की भी जरूरत है जो नाजुक स्थिति को सम्भालने की क्षमता रखते होँ। जब तक इन दोनोँ जरूरतोँ को पूरा नहीं किया जाएगा तब तक कोई भी एनआईसीयू उपयुक्त ढंग से काम नहीं कर पाएगा।“
नियोनेटल इंटेंसिव केयर के क्षेत्र में आए हालिया तकनीकी विकास एक समयपूर्व जन्मे बच्चे की सात महत्वपूर्ण जरूरतोँ को पूरा कर पाने में सक्षम हैं, जैसे कि हीलिंग वातावरण, परिवारोँ के साथ सहयोग, बच्चे की पोजीशन और उसको सम्भालने के सही तरीके, बच्चे की सुरक्षित नींद, उसके तनाव और दर्द को कम से कम करना, उसकी त्वचा की सुरक्षा और उपयुक्त पोषण उपलब्ध कराना। बडे अस्पतालोँ और मातृत्व देखभाल केंद्रोँ में मिल्क बैंक खुल जाने से एनआईसीयू में भर्ती बच्चोँ के पोषण की जरूरतेँ बखूबी पूरी का जा सकती हैं।
एनआईसीयू ऐसे होने चाहिए जो नवजात और उसके पैरेंट्स के साथ स्किन-टु-स्किन सम्पर्क को भी सुनिश्चित कर सके जिससे बच्चे का उपयुक्त मानसिक विकास होता है और पैरेंट्स के साथ उसका लगाव बढता है; विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्युएचओ) एसएससी “कंगारू मदर केयर” (केएमसी) की सलाह देता है जो कि एक सम्पूर्ण देखभाल रणनीति है। एनआईसीयू का फिजिकल वातावरण ऐसा होना चाहिए जिसमेँ भरपूर जगह हो,निजता और सुरक्षा हो, उपयुक्त तापमान, टच, सुगंध,स्वाद, ध्वनि और रोशनी सम्बंधी इस तरह का सेंसरी वातावरण हो जो बच्चे के लिए पूरी तरह से उपयुक्त होता है। एनआईसीयू में इस तरह की सुविधा भी होनी चाहिए जिससे “फैमिली सेंटर्ड केयर” के नए ट्रेंड की जरूरतोँ को भी पूरा किया जा सके, इससे नए पैरेंट्स और उनके समय पूर्व जन्मे नवजात शिशु के बीच पारिवारिक भावना को विकसित करने सम्बंधी जरूरतोँ को पूरा किया जा सकता है, चूंकि प्रत्येक एनआईसीयू दाखिले के साथ, अक्सर माता-पिता और बच्चे के बीच सामान्य लगाव नहीं हो पाता है, क्योंकि एनआईसीयू में भर्ती बच्चोँ के पैरेंट्स को काफी मानसिक तनाव, डिप्रेशन और अवसाद जैसी समस्याएँ होने की आशंका रहती है,क्योंकि उन्हेँ अपने बच्चे के अनिश्चित भविष्य, आर्थिक दबाव और यहाँ तक कि पोस्ट ट्रॉमेटिक स्ट्रेस डिसॉर्डर (पीटीएसडी) होने का खतरा रहता है।
इनफैंट पोजीशनिंग असेसमेंट टूल (आईपीएटी) की सुविधा के साथ सही जानकारी उपलब्ध कराकर नर्सोँ की एनआईसीयू के बच्चोँ की क्षमता को बढाया जा सकता है, जिससे एनआईसीयू के बच्चोँ का उपयुक्त विकास सुनिश्चित किया जा सकता है और साथ ही बच्चे की पोजीशनिंग की लगातार निगरानी भी हो सकती है। एनआईसीयू का सहयोगात्मक वातावरण बच्चे में सुरक्षा की भावना को विकसित करता है, जिससे उसका तनाव कम होता है और अधिक ऊर्जा खर्च होने से बचती है। एक समय पूर्व जन्मा बच्चे को जब डायपर बदलने, फीड कराने, नहलाने, जांच और थेरेपी आदि के लिए हैंडल किया जाता है तब वह नकारात्मक प्रतिक्रिया दे सकता है, परिणामस्वरूप बच्चा कई मिनटोँ तक रोता रहता है,जिससे उसकी ऊर्जा खत्म हो जाती है। ऐसे बच्चोँ को बेहद धीरे से, सावधानी पूर्वक उठाया जाना चाहिए ताकि उसे अधिक परेशानी का एहसास न हो। साथ ही, बार-बार उठाने और छूने से बच्चे की नींद डिस्टर्ब हो सकती है, जिससे उसका वजन सही ढंग से नहीं बढेगा, उसका सही ढंग से विकास नहीं होगा और सबसे महत्वपूर्ण बात, इससे उसका मानसिक विकास भी प्रभावित होगा।
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