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Friday, December 14, 2018

एनजीटी का नया फरमान- पाली, भीलवाड़ा व जोधपुर जैसे इलाकों में बिजनेस करना होगा मुश्किल

NGT declared new regulations on ground water consumption in industries


भूमिगत जल निकालने के लिए संशोधित दिशा-निर्देश अधिसूचित, 01 जून, 2019 से प्रभावी   

पहली बार जल संरक्षण शुल्क की शुरूआत 


जयपुर। नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल भूमिगत जल निकालने के संबंध में नए दिशानिर्देश जारी किए हैं इसके अनुसार पहली बार जल संरक्षण शुल्क की शुरुआत की जा रही है। इससे भूमिगत जल पर आधारित उद्योग के लिए जमीन से पानी निकालना और उसका इस्तेमाल करना काफी महंगा हो जाएगा। गौरतलब है कि राजस्थान के पाली में टेक्सटाइल उद्योग पूर्ण रूप से वहां के भूमिगत जल पर आधारित है और रिको द्वारा वहां किसी प्रकार का पानी नहीं दिया जा रहा। इसी प्रकार भीलवाड़ा में करीब 20 प्रोसेस हाउस में प्रतिदिन 5 लाख लीटर से ज्यादा भूमिगत​ जल का इस्तेमाल होता है। वहीं जोधपुर में भी बड़ी मात्रा में औद्योगिक गतिविधियों के लिए भूमिगत​ जल का इस्तेमाल होता है। ऐसे में आशंका है कि भूमि का जल पर बड़ा शुल्क लगाने के बाद यहां पर औद्योगिक गतिविधियां करना बहुत मुश्किल हो जाएगा। हालांकि एनजीटी चाहती है कि भूमिगत जल की बर्बादी और इस्तेमाल कम से कम हो। गौरतलब है कि भारत दुनिया में भूमिगत जल का सबसे बड़ा उपयोगकर्ता है जो हर वर्ष 253 बीसीएम भूमिगत जल निकालता है। यह दुनिया में जमीन से निकाले जाने वाले पानी का करीब 25 प्रतिशत है।
ये हैं दिशानिर्देश
नेशनल  ग्रीन ट्राइब्यूनल (राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण) के विभिन्न दिशा-निर्देशों का पालन करने और भूमिगत जल निकालने के संबंध में वर्तमान दिशा-निर्देशों में मौजूद विभिन्न कमियों को दूर करने के लिए, केन्द्रीय भूमिगत जल प्राधिकरण, जल संसाधन, नदी विकास और गंगा संरक्षण मंत्रालय ने भूमिगत जल निकालने के लिए 12 दिसंबर, 2018 को संशोधित दिशा-निर्देश अधिसूचित किए हैं जो 01 जून, 2019 से प्रभावी होंगे। संशोधित दिशा-निर्देशों का उद्देश्य देश में एक अधिक मजबूत भूमिगत जल नियामक तंत्र सुनिश्चित करना है।
जल संरक्षण शुल्क की अवधारणा
     संशोधित दिशा-निर्देशों की एक महत्वपूर्ण विशेषता जल संरक्षण शुल्क (डब्ल्यूसीएफ) की अवधारणा शुरू करना है। इस शुल्क का क्षेत्र की श्रेणी, उद्योग के प्रकार और भूमिगत जल निकालने की मात्रा के अनुसार अलग-अलग भुगतान करना होगा। जल संरक्षण शुल्क की उच्च दरों से उन इलाकों में नए उद्योगों को स्थापित करने से रोकने की कोशिश हो सकेगी जहां जमीन से अत्याधिक मात्रा में पानी निकाला जा चुका है। साथ ही यह उद्योगों द्वारा बड़ी मात्रा में भूमिगत जल निकालने के एक निवारक के रूप में काम करेगा। इस शुल्क से उद्योगों को पानी के इस्तेमाल के संबंध में उपाय करने और पैक किए हुए पीने के पानी की इकाईयों की वृद्धि को हतोत्साहित किया जा सकेगा।
     संशोधित दिशा-निर्देशों की अन्य प्रमुख विशेषताओं में उद्योगों द्वारा पुनर्चक्रण और शोधित सीवेज जल के इस्तेमाल, प्रदूषण फैलाने वाले उद्योगों के खिलाफ कार्रवाई का प्रावधान करना, डिजिटल प्रवाह मीटरों की पीजो मीटर और डिजिटल जल स्तर रिकॉर्डरों (टेलीमीटरी के साथ अथवा उसके बिना जो भूमिगत जल निकालने की मात्रा पर निर्भर करता है) आवश्यकता की अनिवार्यता, उद्योगों द्वारा पानी का लेखा अनिवार्य करने, कुछ विशेष उद्योगों को छोड़कर छत पर वर्षा के पानी एकत्र करने को अनिवार्य बनाना और प्रदूषण फैलाने वाले उद्योगों/परियोजनाओं के परिसरों में भूमिगत जल दूषित होने की रोकथाम सुनिश्चित करने के लिए अपनाए जाने वाले उपायों को प्रोत्साहित करना शामिल है।
इन्हें मिलेगी छूट
     संशोधित दिशा-निर्देशों के अनुसार कृषि संबंधी कार्यों के लिए जल का उपयोग करने वालों, पानी निकालने के लिए गैर-क्रियाशील तरीकों को लागू करने वाले उपयोगकर्ताओं, निजी परिवारों (जो एक इंच के घेरे से कम की डिलीवरी पाइप का इस्तेमाल कर रहे हैं) और अग्रिम ठिकानों में सामरिक तैनाती अथवा जमाव के दौरान सशस्त्र सेना प्रतिष्ठानों को अनापत्ति प्रमाण-पत्र की आवश्यकता से छूट दी गई है। सशस्त्र सेनाओं, रक्षा और अर्धसैनिक बलों के प्रतिष्ठानों तथा सरकारी जलापूर्ति एजेंसियों के लिए रणनीतिक और सामरिक बुनियादी ढांचा परियोजनाओं को भी छूटें (उच्च जरूरतों के साथ) दी गई हैं।

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