जयपुर। अग्रणी अकादमिक संस्थान जेके लक्ष्मीप यूनिवर्सिटी ने अपने जयपुर स्थित कैम्पस में एक इंटरैक्टिव सत्र का आयोजन किया। रीयल व वर्चुअल टच में सक्षम रोबोटिक तकनीक अथवा‘हैप्टिक्स’के वैश्विक संस्थापक प्रो. मंडायम ए. श्रीनिवासन के साथ आयोजित इस सत्र का उद्देश्य था उन अत्याधुनिक तकनीकोँ और उनके एप्लिकेशन के बारे में जानकारी उपलब्ध कराना जो मेडिकल टेली-ऑपरेटेड सर्जरी, स्ट्रोक के मरीजोँ के रीहैबिलिटेशन, सुनने-देखने के मामले में अक्षम मरीजोँ की सहायता और डायबीटीज एवम ऐसे मरीज जिनके अंग काटने पड गए हैं, के इलाज अहम भूमिका निभाते हैं और सीखने के अनुभवोँ में सुधार लाते हैं। कार्यक्रम में बडी संख्या में रिसर्चर्स और तकनीकी व क्राफ्ट्स से जुडे विभिन्न क्षेत्रोँ के प्रतिनिधियोँ ने हिस्सा लिया, उदाहरण के तौर पर, जयपुर और आस-पास स्थित तमाम इंस्टिट्यूट ऑफ टेकनॉलजीऔर इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ क्राफ्ट्स एंड डिजाइन (आईआईसीडी)। जेकेएलयू के वाइस-चांसलर डॉ. आर. एल. रैना ने कार्यक्रम में हिस्सा लेने वाले सभी लोगोँ का स्वागत किया।
प्रो. श्रीनिवासन वर्तमान समय में यूनिवर्सिटी कॉलेज लंदन (यूसीएल), यूके के डिपार्टमेंट ऑफ कम्प्युटर साइंस की यूसीएल टच लैब के डायरेक्टर हैं। हैप्टिक्स एक उभरता हुआ विज्ञान है जो वास्तव में दूर रखी वस्तुओँ को टच करने के सेंस को रीक्रिएट करने की दिशा में कार्य कर रहा है। इसके लिए जिन तकनीकोँ का इस्तेमाल किया जाता है उनमेँ शामिल हैं माइक्रो-इलेक्ट्रो-मकेनिकल सिस्टम (एमईएमएस), टैक्टाइल ऐरे सेंसर, और वियरेबल टेक्टाइल डिस्प्ले, ताकि दूर बैठकर किसी कार्य को अपने हाथोँ के जरिए अंजाम देने में अधिक वास्तविकता का अनुभव हो। उदाहरण के तौर पर,हैप्टिक रोबोटिक आर्म्स के जरिए दूर बैठे हुए एक्सपर्ट सर्जन मरीज के शरीर पर बडा चीरा लगाए बगैर ही बेहद सही ढंग से सर्जरी कर सकते हैं, यहाँ तक कि विडियो कैमरोँ और कम्प्युटर सिस्टम की सहायता से विदेश में बैठकर भी सर्जरी को अंजाम दिया जा सकता है। टच बेस्ड तकनीक के इस्तेमाल का एक अन्य उदाहरण है बचाव सम्बंधी जांच और रीहैबिलिटेशन। किसी खास ऑब्जेक्ट के सम्पर्क में आने से त्वचा में कितना सेंस महसूस होता है इसका मूल्यांकन एक छोटे से सेंसर के जरिए करके समस्या की गहराई का पता लगाया जा सकता है और एक उपकरण जैसे कि जूते डायबीटीज के मरीज के पैरोँ को कटने से बचा सकते हैं। टच बेस्ड तकनीकोँ का इस्तेमाल स्ट्रोक के मरीजोँ की तेज रिकवरी के लिए भी किया जा सकता है और उन मरीजोँ की सेंसरी क्षमता में सुधार किया जा सकता है जिनके अंग काटे जा चुके हैं और वे प्रॉस्थेटिक्स का इस्तेमाल करते हैं।
आईआईसीडी की डायरेक्टर डॉ. तूलिका गुप्ता ने कहा कि,“क्राफ्ट्स के क्षेत्र में हैप्टिक तकनीक का बेहद रोचक इस्तेमाल किया जा सकता है खासतौर से राजस्थान के समृद्ध क्राफ्ट्स और डिजाइन कार्य के लिए। क्राफ्ट्स का काम करने वाले लोगोँ को प्रशिक्षण देने के लिए हेप्टिक सिम्युलेटर्स का विकास किया जा सकता है जिससे उन्हेँ यह सिखाना आसान होगा कि उपयुक्त स्कल्पचरिंग के लिए कितना टेक्टाइल फोर्स लगाना सही होगा।“ हैप्टिक बेस्ड प्रशिक्षण से गुणवत्ता और उत्पादन दोनोँ में ही सुधार की सम्भावनाएँ हैं और टेली-ऑपरेटेड मास्टर-स्लेव सिस्टम जहाँ एक विशेषज्ञ मास्टर क्राफ्ट्स-पर्सन बहुत सारे क्राफ्ट वर्क के अवतार तैयार करने में सक्षम हो सकते हैं।
कोई भी कार्य करते हुए सीखने में टच अथवा स्पर्श की भूमिका अहम होती है-यही वह मूल विचारधारा है जिसके आधार पर जेकेएलयू अनुभव आधारित शिक्षा के क्षेत्र में खुद को अलग स्थापित करता है। मौजूदा समय में ऑडियो-विजुअल लर्निंग काफी प्रचलित है और ऐसे में अगर दूर बैठकर कोई ऑनलाइन प्रशिक्षण ले रहा है तो उसके सीखने के अनुभव में वास्तविक स्पर्श का एहसास शामिल हो जाए तो परिणाम और भी बेहतर हो जाते हैं।जेकएलयू के डीन (आर एंड डी) डॉ. जे. पी. नायडू ने कहा कि,“हैप्टिक एक तेजी से बढ रही इंडस्ट्री है,जिसका विकास सालाना 18.1% सीएजीआर है, और वर्ष 2026 तक इसका बाजार 42.36 बिलियन तक पहुंचने की उम्मीद है। इसके एप्लिकेशन न्युरोसाइंस,रोबोटिक्स, वर्चुअल रियलिटी इंटिग्रेशन, कम्युनिकेशन,एजुकेशन और रीहैबिलिटेशन तक हैं। यह तकनीकी शिक्षा से जुडा बेहद महत्वपूर्ण क्षेत्र है जिसके बारे में उद्यमियोँ को जानकारी होनी चाहिए। हम यह आशा करते हैं कि अपने सहयोगियोँ के साथ मिलकर सन्युक्त रूप से इस क्षेत्र में शोध कार्य को आगे बढाने में सक्षम होंगे और इसमेँ हमारे सलाहकार होंगे इस क्षेत्र के सबसे प्रतिष्ठित विशेषज्ञ जो आज हमारे बीच इस क्षेत्र के विकास और स्टेट-ऑफ-द-आर्ट के बारे में चर्चा करने के लिए उपस्थित हैं।“
इस कार्यशाला/इंटरैक्टिस सत्र का उद्देश्य था हैप्टिक्स,टेक्टाइल सेंसिंगव टेक्टाइल डिस्प्ले के क्षेत्र में रिसर्च और विकास कार्योँ को आगे बढाने के लिए इच्छुक फैकल्टीसदस्योँ, छात्रोँ और जयपुर व आस-पास या अन्य इलाकोँ की इंडस्ट्री को प्रोत्साहित करना।
प्रो. श्रीनिवासन ने कहा कि, “हमारी योजना है कि सम्बंधित तकनीक में और सुधार कियाजाए और इसके लिए सम्भावित सहयोगी और साझीदारोँ को एक साथ जोडा जाए और इस प्रतिबद्ध्ता के साथ कार्य किया जाए कि इन तकनीकोँ का विकास व्यावहारिक उत्पादोँ को बनाने में इस्तेमाल हेतु किया जाएगा। खासतौर से ऐसे उत्पाद जो देखने अथवा सुनने में अक्षम लोगोँ द्वारा इस्तेमाल किए जाते हैं, बुजुर्गोँ के लिए कारगर हैं अथवा अन्य मरीजोँ की सहायता के लिए हैं (जैसे कि डायबिटिक, एम्प्युटी)। एक स्पर्श आधारित सिस्टम इन सभी लोगोँ के जीवन की गुणवत्ता में बडा सुधार ला सकता है। जब हम इसे आगे बढाने में सफल हो जाएंगे और कस्टमाइज्ड टेक्टाइल तकनीक का इस्तेमाल शुरू कर लेंगे तब हम इसे तमाम तरह की रिसर्च का केंद्रबिंदु बना पाने, उत्पाद तैयार करने और उसे मार्केट में लाने में सक्षम होने की उम्मीद कर सकते हैं।“उन्होने इस बात पर प्रसन्नता जताई कि एमआईटी, स्पिन-ऑफ कम्पनियोँ और यूसीएल के कुछ कार्योँ को जेकेएलयू आगे बढाने का कार्य कर रहा है।
येल, मेसाचुसेट्स इंस्टिट्यूट ऑफ टेक्नॉलजी (एमआईटी) और यूसीएल में 3 दशकोँ से भी अधिक समय तक की गई प्रो. श्रीनिवसन की रिसर्च ने आधुनिक हेप्टिक्स की मल्टीडिसिप्लिनरी फील्ड की स्थापना में बेहद महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। हैप्टिक्स की उनका विस्तृत परिभाषा ने इंसानोँ द्वारा वर्चुअल और मशीनोँ द्वारा वास्तविक, वर्चुअल, स्पर्श के विज्ञान और तकनीकी के क्षेत्र में बडा सुधार लाने का कार्य किया है जिसे अब टेलीऑपरेटेड अथवा नेटवर्क्ड एंवायर्नमेंट के क्षेत्र में रिसर्च कम्यूनिटी ने इसे अपनाया है (मास्टहेड ऑफ आईईईई ट्रांजैक्शन ऑफ हैप्टिक्स) उन्हेँ दुनिया भर में हैप्टिक कम्प्युटेशन, कॉग्निशनऔर ह्युमन कम्युनिकेशन व आधुनिक मशीन जैसे कि कम्प्युटर और रोबोट के क्षेत्र में एक अथॉरिटी के रूप में जाना जाता है।
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