जयपुर। मंडी व्यापारियों ने कृषि उपज पर लगने वाली किसान कल्याण फीस के विरोध में 10 मई तक मंडियां बंद की थी और अब उन्होंने 15 मई तक मंडियां बंद करने का एलान कर दिया है। अब समाचार यह मिलने लगे हैं कि मंडी व्यापारियों के साथ प्रदेश की खाद्य एवं तेल मिलें भी साथ में मिलकर तालाबंदी की घोषणा करेंगी। क्योंकि कहीं ना कहीं उनका कारोबार भी मंडी के साथ जुड़ा हुआ है। कोरोना के चलते लॉक डाउन काल में सरकार की हठधर्मिता ऐसा दिखा रही है जैसे कि सरकार उसी डाली को काट रही है जिस पर वह बैठी है।
यानी कि मंडिया बंद होने से टैक्स कलेक्शन में कमी, खाद्य पदार्थों की आपूर्ति की कमी, मजदूरों को रोजगार में कमी, मंडी कारोबार का पड़ोसी प्रदेशों में हस्तांतरण। जैसे नकारात्मक परिणाम देखने को मिल रहे हैं। फिर भी सरकार मंडी व्यापारियों के साथ संवाद नहीं कर रही है। ऐसे विपत्ति काल में सरकार को हठधर्मिता छोड़कर किसी प्रकार के सकारात्मक संवाद की पहल करनी चाहिए। किसान कल्याण कोष का किसान भी समर्थन नहीं कर रहे। मंडी व्यापारी तो हर प्रकार की लागत अपनी कॉस्ट में जोड़कर ग्राहकों से वसूलते हैं लेकिन इस टैक्स की वजह से या फीस की वजह से आशंका यह है कि ज्यादातर कारोबार या तो पड़ोसी राज्यों में हस्तांतरित हो जाएगा या फिर अन्य माध्यमों के पास स्थानांतरित हो जाएगा। लंबे समय तक मंडी बंद होने से पहले से ही मंडी कारोबारी बड़ी आर्थिक विपत्तियों का सामना कर रहे हैं ऐसे में यह है तालाबंदी उनके लिए आसान नहीं होगी। अगर आटा, तेल व अन्य खाद्य पदार्थों के निर्माण इकाइयां इस तालाबंदी में शामिल हो गई तो प्रदेश में हाहाकार मच जाएगा । यह बात राज्य सरकार को समझनी चाहिए।
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