मुम्बई, पूरी दुनिया में कम्पनियां बड़ी मात्रा में डाटा एकत्र कर रही हैं, ताकि अपना प्रदर्शन बढ़ाया जा सके, ट्रेंडस की पहचान हो सके और उपभोक्ताओं की बढ़ती अपेक्षाओं को पूरा किया जा सके। इसके बावजूद 75 प्रतिशत वैश्विक वित्तीय सेवाएं और बीमाकर्मी यह मानते हैं कि उपलब्ध डाटा बहुत बिखरा हुआ है और भारत में इसके आधार पर बहुत समृद्ध विश्लेषण करना बहुत मुश्किल है। यह चुनौती और बड़ी इसलिए हो जाती है कि 86 प्रतिशत कर्मचारी यह मानते हैं कि उनके लिए इतना डाटा सम्भालना ही मुश्किल है।
इन चुनौतियों के बावजूद ट्रांसयूनियन (एनवाईएसईः टीआरयू) द्वारा कमीशंड ऐटे ग्रुप ग्लोबल स्टडी बताती है कि वित्तीय सेवाओं और बीमा क्षेत्र में काम कर रहे लोग डाटा के और ज्यादा स्रेात चाहते है । इसके साथ ही वे अपने विश्लेषण प्लेटफार्म में आर्टिफिशयल इंटेलिजेंस (एआई) और मशीन लर्निंग का इस्तेमाल करना चाहते हैं, ताकि वे इस सूचना का सही ढंग से इस्तेमाल कर सकंे।
यह ग्लोबल अध्ययन वित्तीय संस्थाओं और बीमा कम्पनियों द्वारा उपयोग में ली जा रही मौजूदा विश्लेषणात्मक प्रक्रियाओं, टूल्स, डाटा स्रोत और विश्लेषणात्मक समाधानों की संचालनीय प्रभाविकता की पड़ताल करता है। इसके ऑनलाइन सर्वे में भारत, यूके, यूएस, हांककांग और कनाडा के 682 मार्केटिंग और रिस्क एक्जीक्यूटिव्स ने फीडबैक दिया है। इनमें से ज्यादातर पूरी दुनिया में व्यापार करते हैं।
अध्ययन में पाया गया है कि आईए और एमएल का बढ़ता इस्तेमाल अभी अगले दो वर्ष और जारी रहेगा, क्योंकि चार में से तीन वैश्विक एक्जीक्यूटिव इन नई तकनीकों को अपने विश्लेषण प्लेटफार्म में जोड़ने पर विचार कर रहे हैं। एआई और एमएल के इस्तेमाल का एक बड़ा कारण यह भी है कि इसके जरिए विश्लेषण की परम्परागत लाइफसाइकिल को महीनों से घटाकर सप्ताहों या दिनों तक किया जा सकता है।
ट्रांस यूनियन सिबिल की सीओओ हर्षला चंदोरकर कहती हैं, ‘‘व्यापार अपने तकनीकी निवेशों की समीक्षा कर रहे हैं और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस तथा मशीन लर्निंग और वैकल्पिक डाटा मॉडल्स तथा स्रोतों को इस्तेमाल करने पर विचार कर रहे हैं। वे चाहते हैं कि उन्हें गहन विश्लेषण मिले ताकि वे जोखिम और उपभोक्ताओ की जरूरतों का बेहतर ढंग से मुकाबला कर सकें। अंत में जो कम्पनियां इस डाटा और विश्लेषणात्मक तकनीकों का ज्यादा बेहतर इस्तेमाल कर पाएंगी, वे अपने ग्राहकों को ज्यादा बेहतर सेवाएं और अनुभव दे पाएंगी और ज्यादा कमाई कर सकेंगी।‘‘
विश्लेषणात्मक दक्षता की चुनौतियों के बावजूद डाटा स्रोत बढ़ने की सम्भावना
वित्तीय संस्थान डाटा स्रोत पर अब ज्यादा खर्च कर रहे हैं। वित्तीय संस्थाओं और बीमा कम्पनियों की इच्छा ऐसे डाटा मे ंनिवेश करने की है, जो नए स्रोतों जैसे गैरपरम्परागत, तृतीय पक्ष और वैकल्पिक डाटा से आए। अगले 24 महीनों में लगभग सभी भारतीय कम्पनियां (99 प्रतिशत) वैकल्पिक डाटा का इस्तेमाल करना चाहते हैं। अहम बात यह है कि यह आंकड़ा वैश्विक प्रतिशत (89 प्रतिशत) से ज्यादा है।
ज्यादातर वैश्विक उत्तरादाता ज्यादा से ज्यादा डाटा स्रोतो में निवेश करना चाहते हैं। इनमें 65 प्रतिशत नए तरीके के डाटा जैसे वेब ब्राउजिंग और एप के इस्तेमाल पर ज्यादा खर्च करना चाहते हैं। भारत में इसकी इच्छा रखने वाले 76 प्रतिशत तक हैं। इसके अलावा भारत के 59 प्रतिशत एक्जीक्यूटिव्स ने बताया कि उनकी व्यापारिक रणनीति के लिए नए डाटा स्रोतों का इंटीग्रेशन बहुत महत्वपूर्ण होगा। हालांकि सही तकनीक का अभाव अभी भी इसकी बड़ी बाधा है, क्योंकि भारत की 32 प्रतिशत कम्पनियां ही नए डाटा स्रोतों को अपने सभी विश्लेषणात्मक समाधानों से जोड़ पाई हैं।
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